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- -वाणा
इक्कीस हजार वर्ष महावीर के निर्माण को पूर्ण होगा. उसके बाद इक्कीस हजार वर्ष का छठा आरा आएगा, जो बड़ा खतरनाक होगा.
विश्व के अन्दर प्रलय जैसी स्थिति आएगी. सभी धर्मो का नाश होगा. उसमें सर्वप्रथम महावीर के जैन दर्शन का नाश होगा. क्योंकि कोई दर्शन कोई मान्यता, कोई श्रद्धा उस समय पर नही रहेगी. आकाश के अन्दर सूर्य इतना प्रकाश देगा कि गर्मी के कारण लोग तड़प कर मर जाएंगे, इतनी भयंकर ठण्ड पडेगी, जीवात्पत्ति की संभावना नहीं रहेगी. सारा विश्व एकदम सिकुड़ जाएगा. भयंकर बारिश होगी, ऐसे अनेक प्रकार से प्रलय के प्राकृतिक कार्य होंगे. इन्सान मात्र एक हाथ प्रमाण का रह जाएगा.
आयुष्य मात्र बीस वर्ष का होगा. छठे वर्ष के अन्दर स्त्री गर्भवती बनेगी. ऐसा वर्णन हमारे जैन शास्त्रों में आता है. परन्तु उसे अभी चालीस हजार वर्ष का फासला है. अपने लिए वर्तमान में चिन्ता का कोई कारण नहीं. धीमे-धीमे उत्तरोत्तर काल इस प्रकार का आएगा. हमारे विचार भी दरिद्र बन जाएंगे. व्यक्ति विचार से भी पीडित बन जाएगा. अपने विचारों से ही पतित बन जाएगा, दिन प्रतिदिन उत्तरोत्तर विचारों में कमी आएगी, यह अवसर्पिणी काल का लक्षण है.
अवसर्पिणी का अभिप्राय-उतरता हुआ समय. परन्तु जब उत्सर्ग का समय आएगा, उत्तरोत्तर विकास होगा फिर इस प्रकार की बरसात होगी. इस प्रकार प्रकृति अपने अनुकूल बन जाएगी कि पृथ्वी के अन्दर वृक्ष अंकुरित हो जाएंगे. धन-धान्य से पूरित बन जाएगी, लोगों के अन्दर भी प्रसन्नता आएगी, फिर से एक नया वातावरण पृथ्वी में निर्माण होगा. यह पृथ्वी का एक प्राकृतिक क्रम है. यह शाश्वत व्यवस्था है, यूनिर्वसल टूथ है, इसमें कोई असत्य नहीं क्योंकि प्रकृति अपना कार्य करती है.
परन्तु इसके अन्दर मेरे कहने का आशय उनका जो प्रश्न था कि शारिरिक उंचाई इतनी कैसी? फिर उंचाई घटती है. यह तो तीर्थंकर परमात्माओं का ऐसा अपूर्व पूज्य होता है पूज्य को लेकर नाम कर्म जिसके कारण यह प्रकृति का बंधन पड़ता है, शारीरिक उंचाई उसी प्रकृति के नाम कर्म को लेकर, वह बंधन करते हैं, निरोगी शरीर होता है. पूर्णतया शरीर की अवगाहना, उंचाई मिलती है, पूर्ण आरोग्य मिलता है, जरा भी असातावेदनीय कर्म जिसके कारण बीमारी पैदा हो, तीर्थंकरों के जीवन में होता नहीं, बहुत सामान्य प्रकार का कदाचित होता.
असातावेदनीय कर्म आदि क्षय हो जाते हैं यह तो शास्त्रीय प्रकार है, परन्तु परमात्मा के इन विचारों में आज के वैज्ञानिकों ने सत्य सिद्ध कर दिया. मैं वैज्ञानिक दृष्टि से ही आपको समझाता हूं.
रसिया के अन्दर साइबेरिया मैदान में इतने लम्बे विशाल प्राणी हैं, आप कल्पना भी नहीं कर सकते, एक मानव खोपड़ी वहां पर 22 लाख वर्ष पुरानी मिली, ऐसा वहां के पुरातत्व के विद्वानों का कहना है, साइबेरिया में से वह खोपड़ी 22 इन्च परिधि की है,
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