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-गुरुवाणी
से त्यागी दिखू बाहर से मैंने सब छोड़ दिया परन्तु मन से अगर परिग्रह नहीं गया, उसका परिणाम क्या आएगा?
बाहर का त्याग कोई मूल्य नहीं रखता. ये पशु बहुत बड़े त्यागी हैं. न घर है न बार है. न कपड़ा है न सोना चांदी है. महान त्यागी हैं. इन बंदरों को देखिए. पशुओं को देखिए. है बेचारों के पास? ये भी गोचरी लाते हैं? घर-घर जाते हैं? नहीं मिलता तो ले लेते हैं. कुछ है इनके पास? लंगोटी भी है? कुछ भी नहीं. कितने निर्दोष हैं. कभी आत्म कल्याण होगा. मोक्ष मिल जाएगा. बाहर से त्याग करना जैन दर्शन में कोई मूल्य नहीं रखता
"मूर्छा परिग्रहः” तत्वार्थ सूत्र का यह वचन है. मन से परिग्रह और वासना से जो आत्मा मुक्त बन जाए, वह मोक्ष का अधिकारी माना गया.
रास्ते में एक महात्मा मिल गए. बड़े त्यागी थे. ऐसे उनकी त्याग की प्रशंसा चली. पूरे गांव के लोग आते, बोलने में बड़े वाक्पटु थे. थोड़ा पुण्य प्रभाव था. जटा रखते थे. वह आत्मा गांव में आए, लोगों से कहते-मैं तो एक पैसा रखता नहीं. जिनको परोपकार करना है, वह आत्मा का करे. परोपकार की प्रेरणा देता हूं. परन्तु लोग आशीर्वाद की कामना लेकर जाते.
ऐसे व्यक्ति उनको मिल जाते थे जो सुखी सम्पन्न हों. उनको कहते कभी एकान्त में आना मेरी धनी पर आना. जंगल में वहां तुमको आशीर्वाद दंगा. बेचारे लोग आशीर्वाद की कामना के लिए जाते. एकान्त में जंगल में एक धूनी जला रखी थी. वट वृक्ष के नीचे बैठते. जटा थी, शरीर पर एक लंगोटी और कुछ नहीं, बड़े त्यागी. बड़ा प्रभाव, कई लोग जाते. श्रद्धावश सोना मोहर रखते. तो वे कहते-बेटा मैं छता नहीं, ये मुझे नहीं चाहिये. वहां दूर रख दो, यह तो डाकिन है. मेरी साधुता को खा जायेगी.
आडम्बर बहुत, शब्द में बहुत सुन्दरता नजर आती. लोग उनके त्याग से प्रभावित होते. परोपकार के लिए दो चार सोना मोहर रख देते. कहते महाराज! जहां आप की इच्छा हो परोपकार में देना. हम तो गुप्तदान मानते हैं. जैसे ही वह भक्त गया. सोना मोहर लेकर अपनी जटा में. सौ डेढ सौ सोना मोहर की थैली उनकी जटा के अन्दर. बाहर से एक दम त्यागी. ___मफतलाल सेठ उसी रास्ते से जा रहे थे. अचानक लोटा लेकर के जा रहे थे. उनको मालूम पड़ गया कि यह सोना-मोहर की आवाज कैसे आई? गिनते-2 चार मोहरें गिर गयीं. यहां तो ये वणिक पुत्र थे. यह आग तो तुरन्त पहचानी जाये. कान में आवाज आते ही विचार किया. यह सोना-मोहर होनी चाहिये. देखा तो झोपड़ी थी और तो कुछ :
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