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गुरुवाणी:
है, हम कभी उसके रुदन को सुनते नहीं उससे बार बार आपको चेताता हूं. तुम्हारा जीवन वृक्ष कट रहा है. जागृत बनो. दो बजाकर के फिर से जगाती है क्या है संसार में जड़ और चैतन्य, तुम चैतन्य हो अनन्त शक्तिमय तुम्हारी चेतना है. कहां यह जड़ की वासना में लिप्त बन गए. कहां पर के अन्दर स्व की कल्पना लेकर तुम चल रहे हो ? जड़ से तुम्हारा कोई संबंध नहीं. इस भाड़े के घर में रह करके क्यों ममत्व कर रहे हो..
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कोई व्यक्ति ऐसा बेवकूफ होगा. भाड़े के घर में रहे और उसमें मार्बल लगाए. फर्नीचर लगाए. रुपया व्यय करे उसे मालूम है कि भाड़े का घर है, कभी भी नोटिस आए और मुझे छोड़ना पड़े. परन्तु हमारी कैसी दशा सुबह से शाम तक कितना काम करते हैं. कितना पाउडर, तेल लगाते हैं. कितना क्रीम लगाते हैं. सुबह से शाम तक स्नान करके इस सुन्दर बनने का हम प्रयास करते हैं. ये सारी शक्ति, ये सारी मजदूरी, हमारे घाटे में है. नफा में कुछ नहीं.
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दो बजाती है और स्पष्ट कहती है. जड़ और चैतन्य भेद विज्ञजन समझ लेना. बाहर से तुम्हारा कोई संबंध नहीं. जगत में दो ही तत्व हैं चैतन्य या जड जड़ को प्राप्त करने का कोई प्रयोजन नहीं, ये तो बच्चों के खेल जैसा है. परन्तु खेल को खेल हम समझे नहीं. उसमें आसक्ति आ गई है मेरापन आ गया है मेरापन ही दर्द का कारण है, वही दुख का जन्म स्थान है जहां असाक्ति आएगी वहीं दर्द पैदा होगा.
मैं बम्बई में एक दिन चौपाटी के किनारे से जा रहा था शाम के समय किनारे-किनारे जा रहा था. बड़ी दूर से नजर पड़ी. बच्चे थे वे रेती के अन्दर अपना मकान बना रहे थे. बच्चों का खेल होता है, मकान बनाया. गार्डन बनाया. बड़े ढंग से बहुत सजाया उसको. जैसे मैं उनके नजदीक किनारे पर पहुंचा तो ड्राइवर गाड़ी लेकर के पास में आ गया. बच्चों को लेने के लिए कुछ समय के लिए वहां खेल रहे थे. ड्राइवर कहीं गाड़ी लेकर गया था उसी समय आया और बच्चों को आवाज दी चलो, चलने का समय हो गया, जैसे ही आवाज मिली मैने देखा, वे बच्चे एकदम उठ गए.
कोई अतिरिक्त नहीं. घंटे भर से मेहनत कर रहे होंगे. इतना सब कुछ बनाया सजाया. परन्तु तीनों बच्चे एक दम उठे. लगाई लात तुरन्त तोड़ फोड़ करके गाड़ी में जाकर बैठ गए. मैंने कहा ये बच्चे बड़े अच्छे हैं. बड़े समझदार हैं. इतनी समझदारी हमारे अन्दर आ जाए तो कल्याण हो जाए. ड्राइवर ने इतना ही कहा- चलो चलने का समय हो गया. लात मार करके सब वहां से उठे सब कुछ तोड़ दिया. जैसा मेरा था ही नहीं.
यह दशा अपने मन के अन्दर आनी चाहिए. यह जो कुछ मैंने बनाया यह मेरा ही नहीं.. उन बच्चों में जरा भी आसक्ति नहीं. हमारे जैसे साधु आए और चिल्लाएं - चलो चलने का समय हो गया नोटिस आ गया तो भी आप चले नहीं. कुदरत की नोटिस
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