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-गुरुवाणी
इन्डियन रेलवे बड़ा धीमे-धीमे चलती है, यह भी कोई स्पीड है? चालीस-चालीस साल हो गये आजादी को और गाड़ी अब भी रोते हुए चलती है. मैं अभी जापान से आया हूं क्या सुपर फास्ट ट्रेन है. वहां मालूम भी नहीं पड़ता एक स्टेशन से दूसरा स्टेशन कब निकला. कब आया और कब गया. इतनी फास्ट ट्रेन चलती है वहां."
दूसरे ने कहा “मैं भी अभी इंग्लैंड से आया हूं, फ्रांस के अन्दर क्या ट्रेन चलती है, इतनी फास्ट चलती है कि वहां कुछ दिखता ही नही. ऐसी हाई स्पीड हैं.
मफतलाल बैठे-बैठे सोच रहे थे कि मैं भी तो कम नहीं हूं, दिल्ली का हूं होशियार हूं. उन्होंने भी बाजी लगाई. कहा - "यार! मैं अभी कैनेडा से आया हूं. और तुम जानते हो रेल वहीं पर बनाया जाता है. रेलवे का विकास ही कैनेडा से हआ हैं. इतनी फास्ट ट्रेन है. और अभी नई शुरू हुई सुपर फास्ट. बम्बई पहुंचने से दो दिन पहले मैं कैनेडा की एक ट्रेन में बैठा, वहां ट्रेन स्टेशन पर रुकी थी और मेरा कुली से झगड़ा हो गया. मैंने हाथ निकाला उस कुली को मारने के लिए. गाड़ी स्टार्ट हुई मेरा वह हाथ दूसरे स्टेशन के कुली को लगा. इतनी फास्ट ट्रेन है." वहाँ इस प्रकार मफतलाल बाजी मार गया. 'कार्यपतितम्' का आशय यही है कि बिना कारण बकवास करना, बोलना कोई मूल्य नहीं रखता फिर भले ही कोई मन के लड्डू खाये और सन्तोष माने. आप लोग बिना कारण बकवास कभी नहीं करना. ये चार भाषा के गण मैंने आपको समझायें. इन्हें अच्छी तरह याद रखना.
स्तोकम्, मधुरम्, निपुणम्, कार्य पतितम् जरूरत हो तभी बोलना बिना जरूरत के कभी अपनी भाषा का उपयोग मत करना. वाणी अपनी शक्ति है, इसका अपव्यय कभी नहीं करना. __इसके बाद के गुण आयेंगे. अतुच्छम्, गर्वरहितम् भाषा में तुच्छता नहीं चाहिये तिरस्कार नहीं आना चाहिये. गर्व रहितम् अभिमान का दुर्गन्ध भाषा में नहीं चाहिये. पूर्व संकलितम् पहले से सोचकर बोलना चाहिए. धर्म से युक्त भाषा बोली जाये. जो आत्मा के अनुकूल हो. आत्मा को एनर्जी देने वाली सत्य का पोषण करने वाली हो, ये जो चार गुण हैं. इस पर आगे विचार करेंगे. आज इतना ही रहने दें.
"सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम्"
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