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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणिवर्य देवेन्द्रसागर परम पूज्य दादा गुरू आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज सदैव ही मेरी प्रेरणा के स्त्रोत रहे हैं। आदरणीय गुरुवर्य की महती कृपा ही साधना पथ को निष्कंटक बनाकर सहज प्रगति में अत्यन्त सहायक सिद्ध हुई हैं। ___ आचार्यश्री के मुखारबिन्द से निकले हुए आशीर्वचन सभी श्रावकों को धर्म मार्ग पर चलने की उत्कट आकांक्षा एवं अक्षुष्ण शक्ति देते हैं। प्रवचनों द्वारा दिया गया आचार्य श्री का मार्गदर्शन श्रावकों को उन्माद से झकझोर कर जगा देता है और उन्हें मोक्षमार्ग पर चलने के लिए निरन्तर प्रेरित करता है। - आचार्य श्री के निरन्तर प्रवचन सुनने से मेरा हृदय आन्दोलित हुआ एवं एक इच्छा हुई कि आचार्य श्री के प्रवचनों को लिपिबद्ध कर के श्रावकों के सम्मुख प्रस्तुत करूं जिससे भ्रमित मानवता को सही दिशा देने वाले आचार्यश्री के प्रवचनों का लाभ जनसाधारण को प्राप्त हो सके। आचार्य श्री के ओजस्वी प्रवचन श्रावक वर्ग के हृदय को आन्दोलित कर न केवल उन्हें अपनी आसक्तियों व कषाय युक्त जीवन के प्रति असारता का स्मरण करा देते हैं अपितु उन्हें दृढ़ता से कषाय युक्त होकर धार्मिक प्रवृत्ति में विचरण को प्रेरित करते हैं। ___ आचार्यश्री की ओजस्वी वाणी एवं उनकी विशिष्ट शैली श्रवण करने पर जितना श्रावक को आन्दोलित करती है उसका लेश मात्र प्रभाव भी इन लिपिबद्ध प्रवचनों द्वारा आए तो मैं अपना प्रयास सार्थक समझूगा। __मेरा यह प्रयास धर्म प्रवृत्ति को विकसित करने में सहायक बने, कषाय युक्त जीवन की प्राप्ति हो एवं मोक्षमार्ग कंटक विहीन हो, यही प्रार्थना है। गणिवर्य देवेन्द्रसागर MSGA AR For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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