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%3-गुरुवाणी
यहाँ तो हमें अपने व्यवहार से अपनी धार्मिकता का परिचय देना है. हर इन्द्रिय पर हमारा अनुशासन होना बहुत जरूरी है. खा-पीकर के तो सारी दुनिया चली जाती है, ऐसा जीवन कोई मूल्य नहीं रखता है. इसीलिए मानव जीवन को परमात्मा के पाने का परम साधन कहा गया है. इसे मोक्ष का मंगल-द्वार माना गया है. न जाने पूर्व जन्मों में कितने पुण्य आपने किए होंगे. प्रयत्न पूर्वक कितनी धर्म साधना आपने की होगी. उसके परिणाम स्वरूप इस वर्तमान जीवन की प्राप्ति हुई है. चौरासी लाख जीवन योनियों की मान्यता है वैदिक और जैन दर्शन की परम्परा में. दोनो ही दर्शन इसे स्वीकार करते हैं.
कितनी ही योनियों के अन्दर हमारा परिभ्रमण हुआ. न जाने कहाँ-कहाँ भटक कर हम यहाँ आये हैं. इसलिए यदि जरा भी प्रमाद किया तो वे ही योनियाँ फिर से आपके स्वागत के लिए तैयार हैं. फिर से यह परिभ्रमण का चक्र चलेगा.
परिग्रह की वासना को लेकर, जगत को प्राप्त करने की कामना को लेकर, पूरे संसार का परिभ्रमण चलता है और संसार जीवित रहता है. हम बार-बार मरते हैं परन्तु यह हमारा संसार जीवित रहता है, जिन्दा बना रहता है. यह कभी मरता नहीं. होना यह चाहिये कि हमारे अन्दर से संसार मर जाये. मन के अन्दर से संसार के विषय मूर्च्छित हो जायें और मैं पूर्ण जागृत रहूँ, अपने पूर्णतम को प्राप्त करूँ..
इस ग्रन्थकार ने अन्तर की करुणा से इस सूत्र की रचना की हैं. जगत का मुख्य कारण वैर, कटुता और वैमनस्य है. इस का जन्म इस से ही होता है. बोलने में विवेक का अभाव हो सकता है क्योंकि भाषा पर आपका कोई नियन्त्रण नहीं है. जिसे हमारे यहां समिति माना गया. समिति का मतलब ही होता है उपयोग, यत्न, कार्य और उस कार्य के विवेक को यहाँ समिति माना गया, भाषा समिति.
क्रियाओं के अन्दर, पौषध प्रतिक्रमण के अन्दर हम इसका उपयोग करते हैं. कि विवेक पूर्वक और मर्यादित रूप में बोलूंगा. जरूरत पड़ने पर ही मैं इसका उपयोग करूंगा. समिति का मतलब होता है सारा ही जीवन व्यवहार. इसे आधार माना गया है. इस आधार पर यदि आपका नियन्त्रण न रहे तो यह धर्म की इमारत कैसे और कब तक टिकेगी? यह आप स्वयं सोचिये.
यदि जीवन में व्यक्ति ने उद्देश्यमलक कुछ नहीं किया. खा पीकर, मौज करके, जीवन व्यतीत कर दिया. सभी विषयों के आधीन रहते हुए दुर्दशा पूर्वक अपनी मृत्यु को प्राप्त हो गया. ऐसे व्यक्ति की - मृत्यु हो जाये तो अन्तिम संस्कार करवाने के लिए भी कोई तैयार नहीं होता. मोहल्ले वाले बाहर से लोग बुलाकर उस लाश को निकलवा देते हैं. और जंगल के अन्दर किसी एकान्त स्थान पर ले जाकर उस लाश को डाल दिया जाता है, कहीं किसी पापी व्यक्ति की ऐसी ही मृत्यु हुई.
वहाँ कोई योगी पुरुष अपनी साधना में अपूर्व आनन्द ले रहा था. एकान्त वातावरण था. प्राकृतिक सुन्दरता बिखरी हुई थी. ऐसे मंगलमय वातावरण में भी अचानक उसके
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