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गुरुवाणी:
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हाल चाल अब बहुत सुन्दर है. मेरी भूल थी, उसे मैंने सुधार ली, आज तक राम को नमस्कार करता था. अब राम को नमस्कार नहीं करता. किसको करते हैं?
जगत् के महाठग को नमस्कार करता हूं. ठग कोई अवतारी पुरुष नहीं. कोई देवी-देवता नहीं. आप ठग को नमस्कार करते हैं? इतने महान संत होकर.
बिल्कुल सही है, मुझे वही नजर आया, उसी को ही नमस्कार करना. पण्डित विचार में पड़ गए. वह कवि सहृदय व्यक्ति थे. उनके भावों को समझ नहीं पाए. विद्वान पण्डित. ने कहा - जरा आप स्पष्टीकरण तो करिए. आप किस ठग को नमस्कार करते हैं तुलसीदास ने कहा अपने ठग का परिचय दूं.
माया तो ठगनी भई, ठगत रहत दिन रात,
जिसने माया को ठगा, उस ठग को नमस्कार. समझ गए आप. माया सारी दुनिया को ठगती है, पर जिसने माया को ठगा. कर्म को ठगा, उसको नमस्कार करता हूं. महाठग कौन अरिहंत, जिसने कर्म को ठगा. वो ठग कौन - राम. अपने अन्तर शत्रुओं को जीत लिया, कर्म को ही बनाया. जगत को बेवकूफ मत बनाइये, कर्म को बेवकूफ बनाइए. जगत् को ठगते हैं तो गुनहगार बनते हैं. यदि आपने कर्म को ठगा, माया को ठगा, तो साहूकार बनेंगे. ठगना सीखिए. वह कला मैं बताऊंगा, आज तो समय काफी हो गया. __माया को कैसे ठगा जाए, भाषा के तीन गुण तक आए, स्तोकम्, मधुरम्, निपुणम्. अब बताऊंगा --- कार्य पतितम्, अतुच्छम्, गर्व रहितम्, पूर्व संकलितम् और धर्म संयुक्तम्. ये गण बाकी रखें हैं. हम चर्चा करेंगे कि कार्य जब हो तभी बोलना. अकार्य बोलने का प्रयास नहीं करना. एक-एक गुण करने लायक है. आपके व्यवहार की बात है. सुबह से शाम तक सारा व्यवहार आपकी वाणी पर आधारित है, वाणी में यदि विवेक का नियंत्रण आ जाए, वाणी में पवित्रता आ जाए शब्द फिल्टर हो जाएं, तो कोई विकार का जन्तु पैदा नही होगा. कोई कटुता वैर विरोध के जन्तु वहां पैदा नहीं होंगे. यदि आत्मा उस वाणी का पान करे तो उसे आरोग्य मिलेगा. इस विषय पर पुनः हम चर्चा करेंगे. आज बस इतना ही रहने दो.
"सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम्"
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