________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुरुवाणी
मेरे मन के संशय को यदि बतला दें. और उसका समाधान करें तो मैं समर्पित हो जाऊं. परमात्मा तो स्वयं सर्वज्ञ थे. वहां कोई कहने जैसी बात तो थी नहीं.
प्रभु ने मन के संशय को सामने रखा और उचित समाधान किया. मेरे कहने का यही आशय है. इतना विरोध करने वाला इन्द्रभूति परन्तु प्रभु ने उसके साथ शालीन व्यवहार किया. सही शिष्टाचार, जरा भी दुर्भावना नहीं, जरा भी तिरस्कार की भावना नहीं. वही प्रेम दृष्टि यदि अपने अन्दर आ जाए तो अपनी सृष्टि सुधर जाए.
सम्राट् श्रेणिक परमात्मा के चरणों का महान उपासक था. कभी प्रभु ने सम्राट् श्रेणिक से ये आदेश नहीं दिया - "विरोधियों को राज्य से बाहर निकाल दिया जाए. मेरे साम्राज्य के अंदर तू मेरा परम भक्त और तेरे सम्राज्य में मेरे विरोधी हैं, उन्हें चुप कर दिया जाए. कभी प्रभु ने कहा?
देवताओं का प्रभु के पास आगमन होता. इन्द्र महाराज परमात्मा की सेवा में आते. ऐसा उनका आलौकिक पुण्योदय. तीर्थंकर नाम कर्म का उदय कभी प्रभु ने इन्द्र से यह आदेश नहीं दिया. क्योंकि ऐसा कर इन विरोधियों को शिक्षा मिले.
हमारे अंदर उत्तेजना आती है. हमारे अंदर आवेश आ जाता है. किसी के विचार को पचाने की ताकत हमारे अंदर नहीं. आप कषायों को पचा लीजिए. टॉनिक बन जाएगा. समता रस उत्पन्न करने वाला बन जाएगा. समता रस आत्मा के लिए टॉनिक है. वह ज़हर भी अमृत बन जाएगा. जो ज़हर को पचा ले, वही महादेव बनता है.
वैदिक परंपरा में बड़ी सुंदर एक कल्पना है. देवताओं ने समुद्र का मंथन किया. दोनों पदार्थ उसमें से बाहर आए. जहर भी आया और अमृत भी आया. जितने भी देव वहां उपस्थित थे, उन्होंने अमृत पान तो कर लिया परंतु जहर खाने को कोई तैयार नहीं. उसे स्वीकार करने के लिए कोई तैयार नहीं. शंकर वहां मौजद थे.
देवताओं ने देखा बड़ी समस्या हो जाएगी. जहर का पान करना भी जरूरी है. परंतु किसी के पास यह साहस नहीं कि वहां जाकर जहर का पान करे. सारे देवता मिलकर आए और शंकर के चरणों में गिरे और कहा प्रभु हम असमर्थ हैं. अमृत तो हम पी गए, जहर पीने को कोई तैयार नहीं. क्या किया जाए? कोई उपाय बतलाइये.
शंकरजी बड़े दयालु थे. और हृदय से उनकी आत्मा सरल थी. इसलिए भोले नाथ कहा जाता है. विष दिया, उन्होंने कहा कोई हर्ज नहीं, मैं पीने को तैयार हूं. लाओ मेरे पात्र में दे दो.
मंथन के द्वारा जो जहर निकला था, शंकर उसका पान कर गए. देवता बड़े घबराए कि कहीं अनर्थ न हो जाए. सहज भाव में मैंने तो प्रार्थना की और प्रभु ने स्वीकार कर लिया. शंकर तो पी भी गए. सारे देवता वहां घूमने लग गए. उनका प्रार्थना में एक रुदन था कि भगवन! कहीं अनर्थ न हो जाए. हमने आपका घोर अविनय किया है, हमें क्षमा कर दें.
For Private And Personal Use Only