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गुरुवाणी
हरेक कार्य में परमेश्वर का स्मरण करता कि मेरा संसार भी मंगलमय बने. कभी दुर्विचार मेरे अन्दर न आ जाय, व्यापार में मेरे मन में कभी अनीति पैदा न हो,
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पाप से डरने वाली आत्मा परमेश्वर को बड़ी प्रिय होती है.
दलाली करने वाला बड़ा प्रामाणिक दलाल था. जेब में तीन लाख रुपये का माल था. बजार के अन्दर बेचने के लिए किसी व्यक्ति ने दिया था. गुंडे लग गये पीछे. गुंडों ने सोचा इसे यहां से उठा लिया जाये तो बहुत माल मिल जायेगा. जैसे ही वह जौहरी की दुकान से बाहर आया तीन चार गुंडे खड़े थे पकड़ा, टैक्सी में डाला और ले गये. जैसे ही उसे टैक्सी में बैठाया उस व्यक्ति ने अपनी अंगुली चलानी शुरू कर दी. परमात्मा का स्मरण कर नवकार मन्त्र का जाप करने लगा और निश्चित हो गया,
उसने कहा, आप एक बार छोड़ दीजिये फिर उसका चमत्कार देखिये आपको बता चुका हूं कि समर्पण में ही रक्षण है.
" अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणममः
"
परमात्मा से वह हर रोज निवेदन करे भगवन्! जगत में मुझे कोई शरण देने वाला नहीं है. तेरे शरण को स्वीकार करने आया हूं. ये जितने बैठे हैं, सब अनाथ है. जगत में कोई रक्षण करने वाला नहीं. नाथ तो एक ही है. वही परमेश्वर जगत का रक्षण करने वाला है
" तस्मात् कारुण्यभावेण रक्ष रक्ष जिनेश्वर"
इस मंगल भावना से जाते हैं कि भगवन् तू मेरा रक्षण कर, परन्तु भगवान के प्रति समर्पण आए तभी तो वह रक्षा करेंगे. हम गन्दी नाली के पानी को देखें तो उससे सदैव दुर्गन्ध ही आती है. वह अहंकार की दुर्गन्ध है परन्तु ज्यों ही वह नाली दुर्गन्धपूर्ण अपने अहंकार का विसर्जन कर देती है अर्थात् नदी में जाकर आत्मसपर्मण कर देती है तो वह पानी रूपान्तरित हो जाता है और उसी नदी में स्नान करने वाला व्यक्ति पवित्रता और आनन्द का अनुभव करता है.
गटर का पानी भी गंगा जल बन जाता है. इसी प्रकार हमारा जीवन पाप से भरा हुआ है. पाप का गटर अन्दर प्रवाहित हो रहा है. यदि परमात्मा का स्मरण कर लिया जाये तो वह समर्पण का भाव आपको गुलाब जल बना देगा, सुगन्धमय आपके जीवन को बना देगा. परन्तु एक बार इस गटर को वहां पर समर्पित कर देना होगा.
रास्ते के अन्दर की एक घटना है. हमारे एक महात्मा आनन्दघन ऋषि अचानक रास्ते से निकल रहे थे. वह महान पहुंचे हुए योगीश्वर थे. रास्ते में संत कबीर दास की कुटिया आई और उन्होंने कबीर दास के आंख में आंसू देखे. वे रो रहे थे. उनकी करुणा बरस रही थी, आनन्दघन ने पूछा, कि भाई कबीर आज क्या हुआ, किस दर्द के आसूं हैं ? तुम्हारी आंख में, कौन सी वेदना है ? क्या हो गया ?
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