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गुरुवाणी:
आशीर्वाद की अपेक्षा रखें. साधु-संतों का आशीर्वाद ऐसे ही नहीं मिलता. वह भी पुण्यशाली आत्माओं को, उनके शुभ कार्य के लिए दिया जाता है. कितने ही गरीबों को मार कर के पाप को आमंत्रित करने के लिए आशीर्वाद नहीं होता कि मैं कहूं - " धनवान भव" और वह पाप कितने ही गरीबों को मारकर के, पाप से उपार्जन करे उसमें मैं भागीदार बनूं. ऐसा मुफ्त का आशीर्वाद साधु-सन्तों के पास नहीं होता. कुछ परोपकार करके आओ, कोई सुन्दर कार्य करके आओ, तभी धन्यवाद दिया जाये."
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उसके दिल में बड़ी चोट लगी, विचार में पड़ गया परन्तु एक चरित्रवान् व्यक्ति के शब्द थे. उसके अन्तर्हृदय में घर कर गया और सोचने लग गया कि कितना निश्चिन्त. कोई परवाह नहीं. मेरा कोई स्वागत नहीं, सम्मान नहीं. मैं आया तो उसकी कोई उनके चेहरे पर प्रसन्नता नहीं. एकदम मस्त सन्यासी और मेरे हित के लिए उसने कहा, कुछ परोपकार करो, और मैंने बाल्यकाल से नियम किया था कि कुछ कार्य करना है.
अब आप सोचिए, बत्तीस करोड़ डालर का "राकफेलर फाउण्डेशन" बनाया. आज से अस्सी बरस पहले बत्तीस करोड़ डालर का कितना मूल्य था.
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विवेकानन्द की सेंच्युरी में उनकी पूरी जीवनी प्रकाशित हुई. कैसे-कैसे उनके जीवन की घटनाएं घटीं, वह सारा वर्णन है. "राकफेलर फाउण्डेशन" की स्थापना भी विवेकानन्द की प्रेरणा से हुई सारा एशिया, अफ्रीका और सारा मध्येशिया गरीबी के नीचे दबे हुए जो देश हैं. वहां के लोगों को मेडिकल एड मिली. शिक्षा के लिए सहायता मिली या ऐसे कोई दुर्भिक्ष, प्राकृतिक प्रकोप हों और इस फण्ड से उनको सहयोग दिया जाए, उसके लिए उस फण्ड की स्थापना हुई.
राकफेलर ट्रस्ट बनाकर विवेकानन्द के पास आया और निवेदन किया कि स्वामी जी! आपने कहा था बहुत बड़ा एक ट्रस्ट मैंने बनाया है. मैंने सबसे पहले उसमें बत्तीस करोड़ डालर जमा कराया है. "राकफेलर फाउण्डेशन" अब तो आशीर्वाद दें.
स्वामी जी ने कहा कि मैं क्या दूं. तुम मुझे धन्यवाद दो. तुमको मैनें जीवन जीना सिखाया. धन्यवाद का पात्र तो मैं हूं कि तुमको यह जीवन जीने की कला मैंने बतलाई. अब तुम्हारे जीवन के अन्दर उस परोपकार का आनन्द आएगा, मानसिक प्रसन्नता मिलेगी.
तुलसीदास जी ने बड़े सुन्दर शब्दों में कहा है:
"पर हित बस जिनके मन मांही, तिनकहँ जग दुर्लभ कछु नाहीं ॥” जिस आत्मा के अन्तर्हृदय में परोपकार की भावना जागृत होगी, जगत् में कोई वस्तु उसके लिए दुर्लभ नहीं.
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उस व्यक्ति ने बाल्यकाल में प्रभु से प्रार्थना की कि भगवान मेरी भावना पूर्ण हो जाए तो मैं गरीबों के लिए कुछ करूंगा. भावना साकार बन गई. किसे नालूम था कि जिसके पास पहनने के लिए एक पैंट, रहने को केवल एक सामान्य झोंपड़ी, खाने का पता नहीं. गुलामी करनी पड़ती है और वह आदमी दुनिया का सबसे बड़ा धनवान बन जाएगा.
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