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गुरुवाणी
उत्पन्न करेगा, विकृति आएगी, उसका गलत उपयोग होगा. पैसा है, आप शराब पीजिए - आपके विचार पर आधारित है, आपके विवेक पर निर्भर है परन्तु कुछ ऐसा कार्य करना कि जाते समय आत्मा प्रसन्न रहे, संतुष्ट रहे.
दुनिया का सबसे धनवान व्यक्ति, राकफेलर, ने कैसी गरीबी में अपने जीवन का निर्माण किया. एकमात्र भावनाः
___ "भावना भवनाशिनी" यदि परोपकार की भावना भी आ जाए तो भी अशुभ कर्मों, अन्तराय कर्मों और जो भी आपके अन्दर दूषित तत्व हैं, उनका वह प्रतिकार कर देती है, भावना में बड़ी प्रचण्ड शक्ति है. कभी “राकफेलर" की जीवनी आप अवश्य पढ़ें. वह दुनिया का सबसे धनवान व्यक्ति था. उसका जन्म जंगल में हुआ और उसकी मां लकड़ियां काटकर बाजार में बेचकर के अपना जीवन निर्वाह करती थी. रहने के लिए सामान्य झोंपड़ी थी. उस बालक के रक्षण में पूरी रात आग जलाकर रहती ताकि कोई जंगली जानवर न आ जाए और मेरे बालक को नुकसान न पहुंचे - ऐसी स्थिति. जहां रहती थी वहां मकान में दरवाजा भी नहीं था. ऐसी भयंकर परिस्थिति में, पूरी दरिद्रता में. उसका बचपन व्यतीत हुआ, थोड़ी-बहुत शिक्षा उसको मिली, बेसिक शिक्षा. आगे पढ़ने के लिए वह प्रयास करता है. मां मजदूरी करके, कष्ट सहन करके, कि अपने बालक को मैं पढ़ाऊं. बालक सशक्त था. उसमें वैचारिक दरिद्रता नहीं थी. उसने प्रयत्न किया और नौकरी मिल गई. एक प्रोफेसर के यहां नौकरी करता. प्रोफेसर बड़ा दयालु, उसकी सारी सुविधा और उसका पूरा ध्यान वह प्रोफेसर रखता. कालेज की फीस स्वयं देता. पढ़ने की पुस्तकें भी वही देता, उसके घर का सब काम वह करता. कालेज में घंटी बजाने की उसकी नौकरी लगवा दी. थोड़ा-बहुत पैसा वहां से मिल जाता.
मां को संतोष मिलता. उसके हृदय में एक ही भावना थी कि मैं अपनी मां की सेवा करूं. मेरे लिए मेरी मां सब कुछ करती है, और मेरी मां ही मेरे लिए सब कुछ है. जब यह मंगल-भावना आती है तो यह कर्तव्यपरायणता को जन्म देती है.
दरिद्रता से कोई तात्पर्य नहीं, यह तो पूर्व कर्म का फल है, परन्तु इस फल का भी प्रतिकार आप कर सकते हैं - आप में वह भावना चाहिए.
अपनी मर्यादा रखकर के ही कार्य करना चाहिए. व्यापार का तरीका बतलाया कि उपार्जन करना परन्तु एक भाग रिज़र्व रखना - एक भाग व्यापार में रखना - उसका एक भाग परिवार के भरण-पोषण में लगाना और एक भाग धार्मिक कार्यों में, परोपकार में, दीन-दुखियों की सेवा में लगाना ताकि कभी कोई समस्या न आए, चिन्ता न आए. मानसिक रूप से आत्मा कभी पीड़ित न हो.
राजस्थान में, गुजरात में एक परम्परा रही है कि प्रति वर्ष सोना, चांदी, स्थाई मिलकियत लेंगे, इस तरह से थोडी-बहत पुंजी वे रिजर्व रखेंगे -- आपत्ति काल में जो
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