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गुरुवाणी
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फावड़े से लेकर के सोना और चांदी के सिक्के तहखाने से बोरों में भरे गये. दस गाड़ियों में वहां पर माल भरा गया. सोना, चांदी, सिक्का, जो भी था सब और जो उसने राशि कहा था, उससे भी अधिक सम्पत्ति सारी गाड़ियों में सजाई. मुनीमों ने कहा जिन्दगी में मैंने इस नगर सेठ के तहखाने का तलिया नहीं देखा था. वह उस दिन देख लिया.
लेकर के गए और जाकर के वहां जो विदेश से दुश्मन लूटने के लिए आए थे, उनको कहा कि आप देख लीजिए अपनी संपत्ति. अगर तोलना है तो तोल लीजिए. मेरे वचन में यदि कोई अन्तर आए तो आप मुझे सजा दीजिए. आपने जो वचन दिया है उसका पालन होना चाहिए. वह स्तब्ध रह गया यह देखकर कि हिन्दुस्तान का एक इंसान, ऐसा दयालु हो सकता है. यह खुदा का फरिश्ता है.
उसने कहा सेठ साहब! हमारी भूल हुई. अब जीवन में ऐसा पाप हम कभी नहीं करेंगे. हमको पेट भर के मिल गया. अब यह लूट-मार का धन्धा, या किसी को खत्म करने वाला काम नहीं करेंगे, आप विश्वास कीजिए.
हृदय-परिवर्तन हुआ. वचन देकर के गया. सारे अहमदाबाद में जब यह बात फैली सबके दरवाजे खुल गए. लोगों ने प्रसाद बांटना शुरू कर दिया. मन्दिरों में गये और लोगों ने पूरे अहमदाबाद में जलसा मनाया. नहीं तो चौबीस घण्टों में श्मशान हो जाता. सैंकड़ों-हजारों इंसानों का कत्लेआम कर दिया जाता. यह नगर सेठ खुशहालदास, कस्तूरभाई सेठ के दादा के दादा के जीवन की घटना है. इतना बड़ा त्याग सारे शहर को बचाने के लिए केवल एक व्यक्ति ने दिया.
अहमदाबाद की सारी प्रजा, मुसलमान से लेकर के हिन्दू तक सब कौम के लोग माणिक चौक पर एकत्रित हो गए और यह निर्णय किया कि जिस नगर सेठ ने आज हमको बचाया, नया जीवन दिया, हमारे शहर को आबाद रखा, हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम उसके लिए कुछ करें. सेठ ने मना कर दिया कि मुझे इसके बदले में कुछ नहीं चाहिए. लोगों ने तय किया कि यहां जो भी व्यापार होगा, एक रुपये में से एक पैसा सेठ का नज़राना होगा और यह नज़राना बाजार की तरफ से उनको हर साल भेंट किया जाएगा. नगर सेठ ने मना कर दिया.
अहमदाबाद के व्यापारियों का यह प्रस्ताव नगर सेठ ने ठुकरा दिया और कहा कि आप मुझे लज्जित न करें. मैंने जो किया अपना कर्त्तव्य समझ कर किया. आपने जब नगर सेठ बनाया तो सेठाई ऐसे नहीं रहती. प्रसंग आने पर उसका सही उपयोग होना चाहिए. लोगों ने बहुत जिद्द करके उनको बहुत कुछ तोहफा दिया. ब्रिटिश के काल में कस्तूरभाई सेठ की परम्परा तक नज़राना मिलता रहा. अहमदाबाद शहर को बचाया, उसके प्रतीक के रूप में यह हर वर्ष दिया जाता था.
आप विचार कर लीजिए कि हमारे पूर्वज किस प्रकार के थे. घर की सारी सम्पत्ति ले जाकर के दे दी. यह नहीं सोचा कि कल क्या होगा. मेरी सेठाई कैसे चलेगी. पुण्य |
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