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-गुरुवाणी
देखा आपने. जैसे ही बाप के कान में यह शब्द गया कि मुझे नौकर कहता है, चला गया. जिन्दगी में इस लड़के का मुंह मुझे नहीं देखना. भूखे मर जाऊंगा, आत्मघात कर लूंगा पर इस नालायक कुपुत्र का मैं मुंह कभी नहीं देखूगा.
समझ गए, धर्म संस्कार से शून्य जीवन का यह परिणाम आता है. बाप को नौकर कहते हुए शर्म नहीं आयी. उसने विचार नहीं किया कि मैं क्या कर रहा हूं? जिसने मुझे जन्म दिया, भूखे रहकर और दिन-रात मुझे खिलाया. फटा हुआ कपड़ा पहन कर मुझे सुन्दर कपड़ा पहनाया और कितना ऋण लेकर, कितनी मजदूरी करके मुझे अमेरिका भिजवाया. मुझे इस पद पर बिठाने का सारा श्रेय तो मेरे बाप का ही है, वह सब उपकार भूल गया, साफ हो गया. यह पश्चिम की आधी इतनी खतरनाक है कि यह सारे सदविचारों को उड़ाकर के रख देगी.
अगर जीवन में आप सावधान नहीं रहे और ऐसी संतान आपके जीवन में आगे चलकर घातक सिद्ध होगी. वह मानसिक शांति देने में कभी सहायक नहीं बनेगी. इसीलिए बाल्यकाल में ही ऐसा संस्कार दिया जाये कि सदाचार से वह आत्मा अपने जीवन को प्रतिष्ठित कर पाए. उनके जीवन के अन्दर सद्विचार उत्पन्न हों. उनका जीवन एक वट वृक्ष, की तरह बने. अनेक आत्माओं को शीतल छाया देने वाला बने. अनादि काल का संस्कार है और हम विषय की दुर्गन्ध में रहे, तो संयम की सुगन्ध हमको मालूम ही नहीं पड़ेगी.
चांदनी चौक के अन्दर मफतलाल सेठ की दुकान थी. इत्र की दुकान थी. बेचारा सुबह हरिजन आता, झाडू देकर दुकान साफ किया करता. मेरी दुकान को जरा अच्छी तरह से साफ रखना, बाहर गन्दगी न रहे, गन्दगी न रहे. मैं तुझे इनाम दूंगा. वह इनाम के प्रलोभन में वह बेचारा हरिजन रोज़ सुबह आता और बड़ी साफ-सफाई कर जाता.
एक दिन हरिजन ने कहा, सेठ साहब! आपने कहा था इनाम के लिए अब दीवाली नजदीक आ रही है, कुछ बख्शीश. मफतलाल सेठ क्या देने वाले थे. काम करा लिया. उन्होंने कहा कि देखो - गुलाब का इत्र तुम्हें देता हूं. एक सींक पर इत्र का फूट्टा बनाकर के कहा कि लो सूंघो. थोड़ा और ज्यादा दूंगा अपने परिवार वालों को भी जाकर देना. यही तो इनाम है. मेरे पास जो चीज़ है वही तो इनाम में दूंगा. ____ जिन्दगी में कभी इत्र सूंघा ही नहीं. उस बेचारे हरिजन को सीख के अन्दर लगाकर के इत्र दिया, गुलाब का इत्र था. जैसे ही सूंघा बेहोश हो गया. मूर्छित हो गया. जिन्दगी में कभी ऐसा अपूर्व सुगंध अनुभव किया नहीं और वह बेचारा वहीं बेहोश हो गया. जीवन की अपूर्व घटना थी. इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई. मफतलाल ने कहा! अरे यार कुछ नहीं हुआ. मैंने तो गुलाब का इत्र इसे इनाम में दिया. मेरी दुकान के सामने साफ-सफाई करता है इसलिए इसे इत्र का फूहा दिया. उसकी घर वाली कहीं
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