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-गुरुवाणी
___आत्मा की खोज के समुद्र में जब डुबकी लगाएंगे, तब समत्व रूप रत्नों की प्राप्ति होगी. इस उपलब्धि के लिए आपको ध्यान की प्रक्रिया से गुजरना होगा, ध्यान द्वारा ही उस परम तत्व की, परमानन्द की अनुभूति होगी. मैं क्या हूं? कहा हूं? आदि प्रश्नों का भी सहज में समाधान मिल जाएगा. समाधान प्राप्ति के बाद आप आप नहीं रह पाएंगे. पूर्ण रूपान्तरण हो जाएगा. वर्षों की सतत् साधना, मोक्षफल की जननी बन जाएगी.
साधना चले और जीवन न बदले, इससे बड़ा क्या आश्चर्य हो सकता है? सूर्य निकला हो और कहे आकाश अभी अंधकार का आश्रय बना हुआ है, यह कोई स्वीकार्य है? पानी पी लिया जाए और कहें प्यास नहीं बुझ पाई तो समझना चाहिए कि हमने पानी ही नहीं पिया. पानी की जगह किसी गलत वस्तु का सेवन कर लिया. ध्यान की उपलब्धि, उसकी अनुभूति किस तरह से हो वह भी आपको समझाऊंगा. आज इतना ही रहने दें.
“सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयति शासनम"
कब्र में सोए एक मुर्दे ने आवाज दी मुझे यहाँ कौन छोड़ गया? मेरे पास धन-मकान-सब कुछ था. मुझे यहाँ अकेला कौन छोड़ गया?
वहीं से गुज़रते एक कवि ने प्रत्युत्तर दिया : “सब्र कर, तुझे छोड़ने कोई तेरा दुश्मन यहाँ नहीं आया. जिनके लिए तू सब कुछ छोड़ आया है, वे ही तेरे परिजन तुझे यहाँ लाकर छोड़ गए हैं!
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