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गुरुवाणी
परन्तु नहीं मालूम कि प्रार्थना अमूल्य है. मैंने कहा कि दिमाग से आप जूता निकाल देना. परन्तु हमारी हालत बड़ी खराब है जाता नहीं, पुरातन संस्कार है, प्रयत्न करेंगे तो ज़रूर सुधार आएगा.
महात्मा को आकर के अपशब्द बोल गया. साधना में उनका प्रवेश हो चुका था. वे तो साधना के नशे में थे सब भूल गए थे, दुनियां कहां है? चित्त की ऐसी एकाग्रता आ जाती है, कुछ पता नहीं पड़ता, क्या हो रहा है? जहां तक यह स्थिति नहीं आएगी, संसार से शून्य नहीं बनेंगे और कभी अन्दर में सर्जन नहीं होगा. आत्मा की वह खोज कभी पूरी होने वाली नहीं है.
सम्राट् अकबर जंगल में शिकार खेलने के लिए गए थे. शाम का समय था, खुदा की बन्दगी के लिए नमाज पढ़ रहे थे. बड़ा सुन्दर कालीन बिछा दिया गया. उनके साथ और भी कई अमीर थे. अचानक शाम के समय एक छोटा-सा निर्दोष बालक दौड़ता हुआ आया और गलीचे के ऊपर से निकल गया. बड़ा सुन्दर गलीचा था. सम्राट् एकदम नाराज़ हुए अपने आदमियों को कहा कि इस बालक को पकड़ करके ले आओ.
कहा था और
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नमाज़ पूरी हो गई. बन्दगी करके जैसे ही बादशाह अपने कैम्प में गए. सिपाहियों ने उस बच्चे को बादशाह के सामने पेश किया. बच्चे को बादशाह ने तुझे शर्म नहीं आई. कैसी बदतमीजी की तुमने मैं खुदा की नमाज़ पढ़ रहा तू मेरे सामने से निकल कर चला गया. मेरा गलीचा गन्दा कर गया.
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बच्चा कुछ भी नहीं बोला. वह बड़ा समझदार बच्चा था. हाथ जोड़ कर के कहा गुस्ताखी माफ करें. मुझे क्षमा करें. मैं एक बात कहना चाहता हूं मैं अपनी मां के साथ आया था. मां जंगल में लकड़ियां काट रही थी, शाम का समय था. मैं जंगल में खेलने चला गया, मां चली गई, मां ने देखा बालक आ जाएगा. मैंने जब देखा तो मां नज़र नहीं आई. किसी साथी ने कहा-तेरी मां इस रास्ते से गई है. मैंने अपनी मां खोजने में स्वयं को ऐसा खो दिया. मुझे कुछ नहीं मालूम, बादशाह कहां खड़े हैं. नमाज कहां पढ़ा जा रहा है. गलीचा और कालीन कहां बिछा है. मैं दौड़ता गया. खोज में स्वयं को खो दिया. मेरी खोज पूरी हो गई. मां मिल गयी. हुजूर ! आप खुदा की खोज में निकले थे. आपको सब मालूम है कौन किधर से गया, गलीचा किसने गन्दा किया. यह आपकी खोज कब पूरी होगी ?
परमात्मा की प्रार्थना में जब तक हम स्वयं को खोएंगें नहीं, तब तक आपकी खोज पूरी होने वाली नहीं स्वयं को खोना है, स्वयं को खोजना तो दूर गया. परमात्मा की खोज भी दूर गई. हम तो दुनियां को खोज रहे हैं. पैसे को खोज रहे हैं कहां से मिलेगा. परमात्मा के माध्यम से यदि आप पैसे को खोज रहे हैं, तो यह हमारी मूर्खता होगी.
महात्मा ध्यान में मग्न थे. सब खो चुके थे. संसार को भूल कर आए थे. मात्र परमात्मा की स्मृतियों में जीवित थे. उनके लिए संसार मर चुका था. वासना ख़त्म हो गई थी. वह व्यक्ति गालियां देकर के गया, पता ही नहीं. दो-तीन दिन तक उसने ये नाटक किया
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