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-गो तभी सवेरा । मनुष्य के जीवन में जा प्रारंभ से ही सर्व आदर्शों के अनुरूप जीवन को ढालने का उपक्रम बहुधा नहीं होता | है। मनुष्य को अक्सर समझ आते-आते कभी| कभी काफी समय गुजर जाता है | विलम्ब से | समझ आने पर उसके अनुरूप ढलने में कठिनाई आती है । उस समय जीवन चुनौतिपूर्ण हो जाता है । जो समय व्यर्थ गया वह लौट कर नहीं आता, परन्तु प्राप्त समय का सदुपयोग कर लिया जाए तो काफी कुछ सुधार हो जाता है. पवित्रता अंततः सारी मलिनता को शुद्ध कर देती है। आचारांग सूत्र का यह सुभाषित मननीय है -
अणाभिक्कतं च वयं संपहाए,
खणं जाणाहि पंडिए । हे आत्मविद् साधक ! जो बीत गया सो बीत गया । शेष रहे जीवन को लक्ष्य में रखते हुए प्राप्त अवसर को परख ! समय का मूल्य समझ ! पंडित वही है, जो क्षण-क्षण को समीचीन रूप से समझता है । जब भी यह जान ले कि वास्तविक जीवन का आनंद किस विधि में है तो संकल्प ग्रहण कर उसके अनुरूप जीवन जीना आरंभ कर दे । पारसमणि मिल जाने पर जैसे हर कोई उससे
स्वर्ण की प्राप्ति अविलंब कर लेता है, उसी तरह 88 - अध्यात्म के झरोखे से
F_सतत जागृति : जीवन की सही समझ
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