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2_आध्यात्मिक विकास की अभिक्रियाएँ
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ध्यात्मिक विकास सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् चारित्र की साधना पर आधारित है । समस्त आत्माओं में प्रज्वलित ज्योतिर्मय आत्म स्वरूप को देखना एवं उस ज्योति का आदर करना ही यथार्थ दर्शन, यथार्थ ज्ञान है । शुद्ध आत्म ज्योति ही परमात्म-ज्योति है । यही यथार्थ दर्शन है । ज्ञान दर्शन और चारित्र की पूर्णता ही आध्यात्मिक चरम विकास है, यही मोक्ष है । मोक्ष, व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य है । संसार की अनेकानेक पीड़ाओं से जब मानव ग्रस्त एवं संत्रस्त होता है तो वह उससे मुक्ति पाना चाहता है । मोक्ष चरम पवित्रता है । सर्व पीड़ाओं से मुक्ति, सर्व क्रियाओं से मुक्ति, सर्व कर्मों एवं कषायों से विरक्ति मोक्ष ही तो है । हम जितने पारदर्शी होते जाएंगे, उतने ही पवित्र, उतने ही निष्कलुष बनते जाएंगे, पर इसके लिए सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र रूप मोक्ष मार्ग पर गतिशील होना आवश्यक है । अध्यात्म का प्रथम चरण सम्यग्दर्शन है | सम्यग् दर्शन को 'सम्यक्त्व' के रूप में जाना पहचाना जाता है । संक्षिप्त में सम्यक्त्व की सरल परिभाषा यही है वस्तु स्वरूप का यथार्थ बोध एवं उस पर श्रद्धा | सम्यग् दर्शन की उपलब्धि जिन जीवों को होती जाती है - उनमें कुछ आंतरिक विशेषताएं आ जाती है । सम, संवेग, निर्वेद अनुकंपा एवं
अध्यात्म के झरोखे से
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