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- मनुष्य विवेक से चले, विवेक से बढ़े
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वेक या अविवेक ही मनुष्य को आध्यात्मिक उत्स या पतन सौंपता है । बहुधा उत्स की ओर अग्रसर व्यक्ति अविवेक का सहारा लेकर पतन की ओर बढ़ने लगता है, उसी तरह पतन की ओर धकेला जाता व्यक्ति
विवेक का सहारा लेकर उत्स को पाने लगता है । इसका सीधा मतलब यह है कि किसी भी क्षण, किसी भी स्थिति में विवेक या अविवेक अपना प्रभाव डाल सकता है। यह तो व्यक्ति के ऊपर है कि वह इनमें से किसे ग्रहण करें । वह जो भी ग्रहण करेगा, उसीके अनुरूप उसकी स्थितियाँ होगीं ।
62 अध्यात्म के झरोखे से
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जिसमें विवेक नहीं है, वह औरो के हाथ का खिलौना बन जाता है । वह सुरुचिविहीन हो जाता है । वह दयनीय हो जाता है। वह बदलती हुई स्थिति में अपने को ढाल नहीं पाता है । अविवेक मनुष्य को उन संदर्भों में से परे कर देता है जो उसकी प्रतिभा को विकसित करने में सहायक हो सकते हैं । विवेक से मनुष्य का 1 सम्मान भी होता है । हालांकि कभी कभी अविवेकी भी सम्मान बटोर ले जाते हैं पर वह सम्मान रेत के घरोंदे के समान शीघ्र ही धूल धूसरित भी हो जाता है । विवेकी मनुष्य पर एकाएक कोई भी व्यक्तित्व हावी नहीं हो सकता ।
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