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अनिष्ट की प्राप्ति, चिन्ताओं का चक्र, आर्तध्यान उत्पन्न होने के कारण है । काम योग की तीव्रता भी आर्तध्यान उत्पन्न कर रही है । आत्मा को शुन्द्र बनाने वाले ध्यान धर्मध्यान कहलाता है. अत्यन्त पवित्र एवं परम उज्ज्वल ध्यान जिससे आत्मा पवित्र व स्वच्छ बने शुक्लध्यान कहलाती है । शुक्लध्यान में ध्याता के बाह्य संसार के समस्त संबंध टूट जाते है, ध्याता को शरीर का भी भान नहीं रह जाता है। अतः शुक्लध्यान ही योग पर समाधि है। जीवन में अगर अध्यात्म है तो ध्यान भी अवश्य ही होगा ।
60 - अध्यात्म के झरोखे से
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