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+ पुनर्जन्म एवं परामनोविज्ञान की दृष्टि में आत्मा
सम्पूर्ण संसार में दो शक्तियाँ प्रमुख है - सचैतन्यशक्ति, जड़शक्ति । इन्हीं दो तत्त्वों से दो शक्तियों से सारा संसार भरा पड़ा है। इन दोनों शक्तियों में से आत्मशक्ति प्रमुख है. आत्मशक्ति के बोध एवं इसके समुचित उपयोग के बिना सारा का सारा तंत्र ही अव्यवस्थित एवं असंतुलित हो जाता है । सम्पूर्ण भारतीय अध्यात्मवाङ्गमय का स्वर है कि आत्म तत्त्व के ज्ञान के अभाव में सब कुछ व्यर्थ है । शुद्ध आत्मतत्त्व को सम्यक् प्रकार से जान लेना, पहचान लेना ही महावीर की दृष्टि में सच्चा ज्ञान है। मैं कौन हूँ ? मैं की खोज, मैं की पहचान ही यथार्थ ज्ञान है। स्थानांगसूत्र में बिना मंगलाचरण के पहला ही सूत्र कहा गया है - आत्मा एक है - ‘एगे आया' । यह आत्मा का एकत्व ज्ञान स्वरूप की दृष्टि से है । आचारांगसूत्र में भी इस प्रकार की ध्वनि आई है कि जो ज्ञाता है वही आत्मा है,
और जो आत्मा है, वही ज्ञाता है । 'जे आया से विन्नाया, जे विन्नाया से आया ।' ___ आत्मा ज्ञान स्वरूप है । चेतना आत्मा का गुण है। जहां आत्मा का अस्तित्व नहीं वहाँ ज्ञान का भी अस्तित्व नहीं । जहाँ लक्ष्य है, वहीं लक्षण है । जहां लक्षण है, वहीं लक्ष्य है. लक्ष्य और लक्षण कभी अलग नहीं रह सकते । जैसे सूर्य और प्रकाश कभी अलग-अलग नहीं किए जा
36 - अध्यात्म के झरोखे से
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