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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 2 - आध्यात्मिक जीवन की पूर्णता के लिए सम्यक् चरित्र www.kobatirth.org आ ध्यात्मिक जीवन की पूर्णता के लिए सम्यक् चारित्र अनिवार्य है । केवल श्रद्धा या ज्ञान अधूरा पक्ष है । मात्र श्रद्धा पर ज्ञान से काम नहीं चलता, उसके लिए आचरण आवश्यक है । जिज्ञासु द्वारा जब यह पूछा गया कि अंग सूत्रों का सार क्या है ? तो इसका हुश्रुत आचार्यों द्वारा समाधान दिया गया कि इन सबका सार आचार है, सम्यक् चारित्र है । इसके अभाव में आंतरिक विकास थम जाता है । सम्यक् चारित्र, मन, वचन एवं काय की गति विधियों का सम्यक् नियमन करता है । चारित्र दो व्यवहार चारित्र और निश्चय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकार के हैं चारित्र । व्यवहार चारित्र अणुव्रत, महाव्रत समिति, * गुप्ति, धर्म एवं तप में प्रवृत्ति है । आत्मस्वरूप में लीनता तथा क्रोधादि कषाय एवं विकास की क्षीणता अथवा अल्पीकरण निश्चय चारित्र है । 26 अध्यात्म के झरोखे से - जैनगमों में चारित्र का वर्गीकरण पांच प्रकार से किया गया है सामाजिक चारित्र, छेदोपस्थापनीय चारित्र, परिहम् विशुद्धी चारित्र, सूक्ष्म संपदाय चारित्र एवं यथाख्यात चारित्र । पहले इन चारित्रों के स्वरूपों को भी संक्षेप में समझ लेना चाहिए | हिंसा असत्य आदि पापों से विरति सामाजिक चारित्र है । इसका ग्रहण कुछ सीमा विशेष के लिए भी किया जाता है तथा संपूर्ण जीवन के लिए भी । छेदोपस्थापनीय चारित्र में For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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