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होता, क्योंकि इन दोनों योगों का संचालक मन है । उस पर विजय पा लेने पर सब पर विजय हो जाती है । आध्यात्मिक महाकवि आनंदघनजी ने भगवान कुन्थुनाथ की प्रार्थना करते हुए कहा है -
"मन जीत्युं ते सगली जीत्यु ऐ बात नहीं खोटी, एस कहे मैं जीत्युं ते नवी मानु, एही बात छे कंई मोटी।
हो कुंथुजिन ! मनड़ो किम ही न वांझे ॥" इससे यह स्पष्ट हो गया कि कर्मबंध अथवा मुक्ति, आध्यात्मिक प्रगति और अवनति में प्रबल कारण मन है । मन योग का योग साधना द्वारा निरोध कर आध्यात्मिक विकास में आने वाले अवरोध को समाप्त करने का अभ्यास रहना चाहिए।
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अध्यात्म साधना में योग का सहयोग -23
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