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प्रत्येक आत्मा में, अनंत क्षमताएं विद्यमान है । उन क्षमताओं को प्रथम बात यह है कि ठीक तरह से समझा जाए और समझने के बाद उनका समुचित दिशा में समुचित उपयोग किया जाए । हम दृढतापूर्वक विषमता से संबंध विच्छेद करके सतत समत्व में अर्थात् 'स्व' में अपने आपमें निवास करें - तदन्तर जो अनुभूतियाँ - जो प्रतीतियां होगी वे निश्चित रूप से अनिर्वचनीय होगी।
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172 - अध्यात्म के झरोखे से
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