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– आध्यात्मिक उन्नयन में सहायक तथ्य
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ध्यात्मिक उन्नयन ही सच्चा उन्नयन है । भौतिक उन्नयन व्यक्ति इस संसार में कितना ही क्यों न कर लें इसमें प्रशान्ति की अनुभूति एवं प्राप्ति असंभव है । जिसके जीवन में आध्यात्मिक उत्कर्ष हुआ है, वही सुखी है । प्रश्न स्वाभाविक है कि हम आध्यात्मिक विकास को किस प्रकार संपादित करें ? इसके लिए जो सहयोगी तथ्य है, उन्हें सम्यक् प्रकार से समझ लेना चाहिए । सम्यक् समझ के बाद व्यक्ति की गति समुचित दिशा में सहज रूप से होने लगती है । आध्यात्मिक विकास में सहयोगी तथ्यों के सम्बन्ध में भारतीय आध्यात्मिक वाङ्गमय ने गहराई के साथ चिंतन किया है । प्रस्तुत लेखन में आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी ने अपने योग विषयक ग्रन्थों आध्यात्मिक विकास से संबंधित जिन सहयोगी तथ्यों पर प्रकाश डाला है, उन पर हम संक्षिप्त में विचार चिंतन करेंगे ।
योग बिन्दु ग्रन्थ में अध्यात्म विकास क्रम का योग रूप से वर्णन है । जो क्रिया, मोक्ष से संबंध कराती है, जोड़ती है, उसे प्राप्त कराती है, वह योग कहलाती है । वह योग क्रिया पांच प्रकार की है इसे क्रमशः इस प्रकार जाना जा सकता है
अध्यात्म के झरोखे से
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१. अध्यात्म, २. भावना, ४. समता, ५. वृत्ति संक्षय ।
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३. ध्यान,