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जाने से ही तो आत्मा की समग्र शक्तियाँ प्रकट होती है । साधना से आत्मा की शक्ति में अपूर्वता आती है। कर्मों का आत्यंतिक नाश हो तो आत्मा पुनः कर्म फल से लिप्त नहीं होती । कर्मों का आत्मा से हटना ही आत्मा का मोक्ष है । आत्मा अपने मूल ज्योतिर्मय चित्त स्वरूप में पूर्ण प्रकाशित हो जाती है । इसीका नाम मोक्ष है । मोक्ष में आत्मा के सभी निजगुण शुद्ध एवं पूर्णविकसित रूप में विद्यमान रहते हैं। श्रेयस की साधना ही धर्म है। यही साधना पराकाष्ठा बनती है तो आत्मा की सिन्द्रि हो जाती है । मन, इन्द्रियों से ही नहीं, आत्मा के जुड़ाव से शाश्वत सुखों की संप्राप्ति होती है, इस दिशा में किया गया पुरुषार्थ ही सच्चा पुरुषार्थ है और यही पुरुषार्थ अनिवार्य रूप से किया जाना आवश्यक है।
आज अतल अन्तर में उतरो, करो स्वयं का अवलोकन । जीवन की सरिता को दे दो, मोक्ष दिशा का दिग्दर्शन ॥
अध्यात्म का स्रोत मन इन्द्रियाँ नहीं : आत्मा है - 147
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