SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म का सम्बन्ध पारलौकिक सुखों की प्राप्ति तक सीमित नहीं है । उसका सम्बन्ध इस लोक से भी है, इहलौकिक जीवन में भी सुख, शांति, संतोष प्राप्ति के लिए भी आवश्यक है । जो व्यक्ति को अपने वार्तमानिक जीवन में परिवार, समाज और राष्ट्र में एक सच्चे इन्सान की तरह जीने की कला नहीं सिखा सकता, क्या वह धर्म है ? धर्म के फलने-फूलने व व्यापक होने का क्षेत्र यह विश्व है । अतः धर्म व विश्व धर्म व इहलौकिक जीवन का पार्थक्य नहीं किया जा सकता है । मानव को अपना कर्तव्य भुलाकर अन्यथा प्रवृत्ति करने से रोकने की सामर्थ्य धर्म में ही है । धर्म सिर्फ 'मैं क्या हूँ" का ही उत्तर नहीं देता है, बल्कि "मेरा क्या कर्त्तव्य है" इसकी भी स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत करता है। किं कर्त्तव्य विमूढ अस्तव्यस्तता में प्राणी मात्र का पथ प्रदर्शक है । पतन के समय उसके कर्त्तव्य, आचार-विचार को बतलाने में धर्म सबल आधार बनता है और अनुशासन में लाकर सुख शान्ति पूर्ण जीवन की ओर बढ़ने का राज मार्ग प्रस्तुत कर देता है। अतः जीवन के साथ धर्म का संबंध किसी अमुक समय तक ही नहीं किन्तु यावज्जीवन के लिए जोड़ना चाहिये । __ यह धर्म का विशाल और उदार दृष्टिकोण है कि उसमें आध्यात्मिक विकास के साथ लौकिक विकास का भी संकेत किया गया है। जिसका आशय इस विशाल दृष्टिकोण के द्वारा स्पष्ट होता है - सर्वे भवन्तु सुखिनः, सवै सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत् ॥ चाहे फिर इसको नैतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, पारमार्थिक आदि किसी भी नाम से ही कहे वे सब धर्म के ही रूप होंगे। किन्तु किसी एक रूप पर पार देना धर्म के विशाल और दृष्टिकोण की अवहेलना करना है । धर्म को अलग-अलग पंथों और सम्प्रदायों में नही बाँटा जा सकता । वह तो सदा सर्वदा देश, काल, व्यक्ति, परिवार आदि की सीमाओं से परे रहता हुआ प्राणी मात्र को प्रकाश देता है और दे सकता है एवं देगा। 134 - अध्यात्म के झरोखे से For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy