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स्थापित हो सकता है । सर्वस्व प्रलोभन से विनाश ही होता है । लोभ के कारण अपना ही सर्वस्व खो देने का यह प्रसंग बड़ा मार्मिक है । एक व्यक्ति ने एक सूने स्थान में एक आवास बनाया । उसमें एक कमरा वह राहगीरों को विश्राम के लिए भी दे देता था । अक्सर कुछ राहगीर काफी माल भत्ते के साथ भी आते । एक बार उसके मन में लोभ जागा और उसके अपनी पत्नी के साथ मिलकर उन राहगीरों को जान से मारकर उनका धन हथियाना शुरू कर दिया। उनके पास काफी धन इकट्ठा हो गया फिर भी लोभ मिटता नहीं था । पत्नी ने समझाया कि अब हमें लोभ छोड़कर संयम से काम लेना चाहिए। पर उसके मन में तो लालसा के नाग ही फुफकारते रहे ।
एक दिन एक राहगीर आया। उसके पास बहुत सारा धन था। उसने वह सारा धन उस दम्पति को सौंप दिया। परंतु अपना परिचय जानबूझकर नहीं बताया सदा की भांति उस व्यक्ति ने उसे भी मार दिया ताकि उसका सारा धन उन्हीं के पास रह जाए।
दूसरे दिन पास के गाँव में ही रहने वाली एक युवती आई । उन्होंने पहचाना कि वह तो उनकी ही पुत्रवधू है । वर्षों पूर्व उससे पुत्र का रिश्ता किया था । सोच रहे थे कि पुत्र, जो काफी समय से अपने मामा के यहाँ व्यवसाय कर रहा है, आएगा तो गौना करा लेंगे।
युवती ने पूछा कि वह कहाँ है जो कल रात आये थे । युवती की आँखों में लज्जा थी । दम्पती ने यह सुना तो वे सकते में आ गए। उन्होंने लोभ के वशीभूत अपने ही पुत्र को मार डाला था।
आपने देखा कि लोभ के कारण कितना बड़ा अनर्थ हो गया। दम्पती ने अपने एकमात्र पुत्र को अपने ही हाथों से मार दिया-यह तो अनजाने में हुआ, परंतु आजकल तो ऐसा कर्म जानबूझकर भी किया जाता है | धन के प्रलोभ में व्यक्ति को पिता पुत्र भाई किसीका भी भान नहीं रहता।
जीवन में संयम का महत्त्व आप जान गये होंगे। संयम का अर्थ विराग ही नहीं होता, गृहस्थ भी अपने व्यवहार में संयम की सीमा का निर्धारण करके अपने आपको कई यंत्रणाओं से बचा सकते हैं । लोभ की लालसा की आग में सब कुछ जलकर 126 - अध्यात्म के झरोखे से
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