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| न की यात्रा बड़ी विकट है। व्यक्ति का
न मन असीमित यात्राएँ सम्पन्न करता है। मन की यात्रा में दूरी कोई बाधा नहीं है । मन, - अपने स्थान पर स्थिर रह कर ही यात्रा करता
है। मन स्वयं कभी थकता नहीं, उसके साथ यात्रा कर रहा मस्तिष्क थकता है। मन अनुकरण करता है, अपनी स्वतः स्फुरणा का भी उपयोग करता है । अनुकरण को सामान्यतः हम नकल भी कह सकते हैं । गलत अनुकरण से मन भटक जाता है, मन भी रूग्ण हो जाता है । मन की स्वस्थता के लिए सुविचार, स्वस्थ प्रदेशों की यात्रा आवश्यक होती है । मन की भीतरी यात्रा बड़ी दुष्कर होती है । मन में मनन करने की शक्ति होती है । वह ज्ञान का अर्जन करता है और अपने अनुभव से प्राप्त ज्ञान को व्यवहार में प्रयुक्त करता है । मन में संकल्प और विकल्प का क्रम निरन्तर चलता ही रहता है। मन में इच्छाओं कामनाओं की जो एक सतत श्रृंखला चलती रहती है । वह मन को चंचल बनाती है । यही मन की अशांति का कारण भी है । ___व्यक्ति का मन जब जब स्वार्थों से भरा पूरा होता है तो समस्याओं का विस्तार होने लगता है। बहुधा वह बाहर की यात्रा ही अधिक सम्पन्न करता है । वह अपने में कम झांकता है
तथा औरों पर अधिक हाहट रखता है । या यूं 118 - अध्यात्म के झरोखे से
0_मन में, स्वच्छ हवाओं को प्रवेश दें
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