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प र्यावरण के प्रति जैन परम्परा अति सजग
1 रही है। कहीं भी प्रकृति के साथ अतिचार न हो, अनाचार न हो इसके लिए स्पष्ट सूत्र जैन परम्परा में उपलब्ध है। न केवल व्यवहार के स्तर पर वरन् भावना के स्तर पर भी इसमें जो संकेत व वर्जनाए दी गई हैं वे पर्यावरण की शुद्धता पर प्रकाश डालती है, प्रेरणा देती है। वातावरण में व्याप्त ताप व आर्द्रता का समुचित परीक्षण जैन दर्शन के चिन्तकों ने किया है उनके अनुरूप अवधारणाए दी हैं। जैन विभूतियों ने जो भी उद्बोध दिये हैं वे घूम फिरकर पर्यावरण की उत्तमता पर जाकर स्थिर हो जाते हैं विकास ग्रहण करते है। ___पर्यावरण का अर्थ है . जीव सृष्टि एवं वातावरण की पारस्परिकता । मनुष्य पक्षी, जीवजन्तु, वनस्पति, सूक्ष्म जीवन गिरि कन्दरा पर्वत नदी झरने वन पुष्प वृक्ष वनस्पति ही नहीं समग्र ब्रह्माण्ड तारक वृन्द सूर्य मण्डल इन सभी की पारस्परिकता ही पर्यावरण को सन्तुलित रखती है । जैन दर्शन का मुख्य हार्द 'जियो और जीने दो' कथन में निहित है, जैन चिन्तकों के अनुसार पर्यावरण संबंधी खतरे अपने ही कर्मों के अधीन है। जैन जैविकी जिन गहराइयों तक गई है वह आधुनिकतम विद्वान के लिए भी संभव नहीं लगती । छह द्रव्य-जीव पुद्गल धर्म अधर्म आकाश और काल पर गहराई से मनन इस
परम्परा की अपूर्व देन है। 112 - अध्यात्म के झरोखे से
19_पर्यावरण का अर्थ : जीवसृष्टि एवं वातावरण की पारस्परिकता
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