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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हम जो यात्रा शुरू करेंगे, उसका स्तर अवश्य होगा। कामना को यदि ऐसा उत्तम आयाम हम दे सकें तो इससे बढ़कर श्रेष्ठ कार्य कोई नहीं हो सकता । कामना वही उत्तम है जो हमें दीन न बनाएं । वही कामना उत्तम है जो हमें शाह बनाए, शाहों का शाह बनाए अर्थात् हमें अपनी आत्मा की अतल गहराइयों में ले जाए। चाह, आकांक्षा इच्छा ये सभी लगभग कामना के पर्यायवाची है । कामनाएं पंख लगाकर उड़ती है। उड़ान ऊंची होती है | धरातल से ऊपर कामनाओं में कल्पना तत्त्व अधिक होता है, अतः अपूर्ण रहती है । पूरी नहीं हो पाती । कामनाओं में लिप्त लोग अंधेरी घाटियों में भटकते रहते है। भगवान महावीर ने साधक को साक्षीभाव में आने के लिए मार्गदर्शन दिया । साक्षीभाव में पहुंचकर ही साधक को स्थितप्रज्ञता प्राप्त होती है। जो भी है उससे लिप्त न रहना - यही है साक्षीभाव. साक्षीभाव में राग और द्वेष का अभाव है। विचारों से, कामनाओं से मुक्ति का उपाय होता है साक्षीभाव । साक्षीभाव है निर्विचार समाधि । निर्विचार चेतना से ही शून्य का उद्घाटन होगा। तभी अपने से अपना, आत्मा से आत्मा का मिलन होगा। आत्मा स्वभाव से दीप्त सूर्य के समान दिव्य है । वह चन्द्रमा के समान शांत रूप है । वह श्वेत पुरुष के समान स्वच्छ व सुन्दर है। जितनी भी कामनाएं, विकृतियां दिखलाई देती है यह आत्म स्वभाव नहीं है, विभाव है । जब-जब भी अपने आपसे दूरियाँ स्थापित होती है तो विकृतियाँ अपना साम्राज्य स्थापित करने लगती है। इन्द्रियां जबरन ही आत्मा को विषयों की रति में खींचकर ले जाती है। जो इन्द्रियों को, मन को वैकारिक प्रवृत्तियों से पृथक कर दें, वही प्रवृत्ति सम्यक् होती है, वही अध्यात्म है | इस अध्यात्म के हर कार्य में, हर उपक्रम में आत्मा की ध्वनि होती है। कामनामुक्ति का उपाय : साक्षीभाव - 103 For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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