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7 मनाएं अनंत है और अनंत का कोई का छोर नहीं । वस्तुतः कामना की पूर्ति से ही नई कामना का जन्म होता है । आध्यात्मिक उत्कर्ष में बाधक है कामनाएं । कामनाओं पर जय किये बिना न आध्यत्मिक अभ्युदय संभव है और न ही दुःखों से मुक्ति । भगवान महावीर ने एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सूत्र प्रदान किया -
“कामे कमाहि कामियं खु दुक्खं !"
दुःखों से यदि अपने आपको मुक्त करना चाहते हो तो कामनाओं पर विजय करो । यह फिनिक्स पक्षी के समान है जो जलकर राख हो जाने पर पुनःराख से जीवित होकर उड़ान भरने लगता है । आकांक्षाओं के आकाश में उड़ने वाला मन का पंछी पूरे आकाश को ताप लेना चाहता है परन्तु यह संभव नहीं हो पाता । आकाश अनंत है उसी तरह इच्छाएं आकांक्षाएँ भी अनंत है । उड़-उड़कर जीवन का अंत हो जाता है, पर इन पर जय किए बिना आकांक्षाओं का अंत नहीं होता, ऐसी स्थिति में दुःखों का एक अंतहीन प्रवाह, स्वयं के ही अविवेक से व्यक्ति स्वयं के जीवन में पुष्ट कर बैठता है । ____ मुक्ति के कामी व्यक्ति को कामनाओं की हर सीमा लांघना जरूरी है | कामनाओं को निरंतर
अध्यात्म चिंतन निरत रह कर क्रमशः त्याग देने 100 - अध्यात्म के झरोखे से
ल_कामनामुक्ति का उपाय : साक्षीभाव
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