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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवनानि [ स्रग्धरावृत्तम् । एवं सर्वान्य-देवानधिगतमहिमश्रीसमालिङ्गिताङ्गः, श्री नाभेयो जिनेन्द्रोऽर्बुदगिरि शिखरोत्तंसभूतोऽभिनू (?) तः । भक्त्युत्कर्षात् सहर्षे तनुतर मतितो, ऽप्याभवं मेऽव्ययश्री, कैवल्यातुल्यमोदोदय सुखनिधये, बोधिलाभाय भूयोत् ॥३३॥ २७ [ उपजातिवृत्तम् ] श्री आदिनाथं नतनाकिनाथं, लक्ष्म्या सनाथं कृतपापमाथम् ।' - संवेगतान्यत्कृतहेमहीरं, संसार-दावा-नल-दाह-नीरम् ॥१॥ निर्वाण-योषिद्-घन-बद्धरागं, सश्रीक-भालं गद-शाखि-नागम् । संस्तौमि संत्रासित कर्म-वीरं, संमोह धूली हरणे समीरम् ॥२॥ विशारदोद्गीत गुण-प्रतान, मीडे वृषाङ्क विगताऽभिमानम् । सद्-ब्रह्म शस्त्रा-पहता-शरीर, मायारसा दारण सार-सीरम् ॥३॥ कल्याण-कन्दोदय-कन्द-कल्पं, सद्वाञ्छिता”क विधान कल्पम् । आदि प्रभु पुण्य शमाऽऽकीरं, नमामि वीरं गिरि सार धीरम् ॥४॥ चेक्रीय्यतामृषभतीर्थकरेण सातं, भव्याङ्गिनां जिनवृषाऽनघं सत्पुराणम् । निर्धूत-हाटक-वसूल-सदङ्गकेन, भावावना-मसुर दानव मानवेन ||५|| उत्तानताऽनुकृतचारु चतुर्गतीनि, दुर्भीति नीर निधि सन्तरणो रुनूनि । भक्त्याऽवन भ्रवर वासव-नाग वृन्द, चूला विलोल कमलावलि मालितानि ॥६॥ नैसर्ग रोहिततमैः करजै विभान्ति, दीर्घप्रभैरतुल-सौख्य-कराणि यानि । संप्राप्त रुप जन संस्तुति सत्पदानि, संपूरिताऽ भिनत-लोक समीहितानि ॥७॥ श्री मारुदेव वृषभाङ्गित पाद-युग्मा, पादानामुक्ति रमणी कर पीउनस्य । त्वत्कानि सङकट घनाऽऽशुग सोदराणि, कामं नमामि जिनराज पदानि तानि ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008691
Book TitleYugadi Vandana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages149
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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