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स्तवनानि
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यः सन्ध्याभ्रसमं निरक्ष्य विभवं, सांसारिकं सत्त्वरम्, जमाहाऽशिवशान्तये शिवपथ-प्रख्यापनेऽदुर्बलाम् । दीक्षां भागवत तममुतयशो, - राशि कृपा वैभवम्, भूभूषांऽर्बुद-भूषणं भवभिदं नौम्यादिनाथं मुदा ||८||
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[ प्रभातीवृत्तम् ]
भजतजगदीश्वरं,
ऋषभ - योगीश्वरं,
शङ्करं
जन्तुगण सकल भवभयहरं, वृषभ - लाञ्छनधरं, प्रथमतीर्थङ्करं विजय
विकारम् ।
विमलगिरि - पूर्व- गिरिराज- वासरकरं, सुमरुदेबोदरा करज
हीरम् ।
जगति गति - वितततर कुमति मत- धनधना
कारकम् ! ऋषभ० . ॥१॥
घनघटा - विघटनोत्कट - समीरम् । ऋषभ० ||२||
मदन-मद-कन्द- -निः कन्दनाऽमन्दतर
धार - तरवारिम् - अमर गिरि धीरम् । कुशल - हरि चन्दन - प्रकर- नन्धनवनं,
कुनय - घन - रेणु - संहरण - नीरम् । ऋषभ० ॥३॥
प्रणत- विबुधेन्द्र - दनुजेन्द्र मनुजेन्द्रगण !, विहित वन्दनमिनं जैन- चन्द्रम् । त्रिजगदानन्दं, नाभिनृपनन्दनं,
पाप-संताप - चन्दनमनिद्रम्
विगत-सकलापदं, सम्पदां कारणं,
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कठिन - ममता-मही - भेद-सीरम् ।
अखिल- मकराकर - प्रकर-बरर - सुचिरतर,
। ऋषभ० ॥४॥
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गरिमधर- चरम - सागर - गभीरम् । ऋषभ० ॥५॥
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