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युगादिवन्दना
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[ वसन्ततिलका वृत्तम् ]
कर्मोघ वारण विदारण हीरणारिम्,
भव्यारविन्द गण बोधन तिग्म रश्मिं । संसार भीतिकर सागरयानपात्रम्,
वन्दे हि नाभिजमह बिमलाचलस्थम् ॥१॥
क्रोधानिलाशन विनाशन वैनतेयम्,
माला चलाधर विभेदन वर्य शम्बम् । माया लता व्रज विकर्तन मत्तनागम्,
वन्दे हि नाभि जमह विमलाचलस्थम् ॥२॥
लोभाऽशुशुक्षणिन मीलन मेघपुष्पम्,
रागोत्कटेन्धनमयं लवितुं कुठारम् । द्वेषासितोदकद नाशन चण्डवातम्,
वन्दे हि नाभिजमह विमलाचलस्थम् ॥३॥
मोहान्धकार पटलात्यय चित्र भानुम् ,
अज्ञान बारण खुसावन सामयोनि । चारित्र नीर जनकाकर पङ्कजन्मम्,
वन्दे हि नाभिजमह विमलाचलस्थम् ॥४॥
कारुण्यता प्रततिमण्डल सारणों च,
सत्योत्तमामर वनाग्रिय पारिजातम् । अष्टादशा श्रवमतङ्गज पञ्चवस्त्रम्,
वन्दे हि नामिजमह विमलाचलस्थम् ।।५।।
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