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चारित्र योग
'जाइ मरणं परिन्नायं चरे संक्रमेण दृढ़े।' जन्म मरण को अच्छी तरह समझकर चारित्र में दृढ़ रहे, उसे चारित्र संपन्न कहते है । चारित्र की संपन्नता से क्या होता है ? कहा है:
'सैलेसी भावं जरणयई' चारित्र की संपन्नता से शैलेसी भाव अर्थात् १४ वें गुणस्थानक की अडोल स्थिति प्राप्त होती है ।
चारित्र शब्द 'चद्' धातु से बनता है जिसका अर्थ है चलना या गति करना । अपनी प्रात्मा स्वभाव दशा से विभाव दशा में जा रही है, उसको फिर से स्वभाव दशा में लाने को ही चारित्र कहते हैं। अंग्रेजी में कहावत है:
'करेक्टर इज ए लुकिंग ग्लास, ब्रोकन वन्स इज गोप्रान ग्लास ।'
चारित्र एक दर्पण है जिसके टूट जाने पर वह समाप्त हो जाता है। दर्पण को तो फिर से जोड़ा भी जा सकता है, किंतु चारित्रभ्रष्ट को पुन: चारित्रवान् बनाना अशक्य है । वस्त्र पर लगा हुआ धब्बा दूर हो सकता हैं, किंतु चारित्र पर लगा हुआ धब्बा दूर नहीं होता । इसलिये मन, वचन, काया का व्यवहार पूर्णतः शुद्ध होना चाहिये । मन, वचन, काया की एकता को प्राप्त करने के लिये कठिन पुरुषार्थ करना होगा । अंग्रेजी कहावत के अनुसार:
__ 'बी हार्ड विथ योर सेल्फ' स्वयं पर अनुशासन करना होगा । मैंने एक अंग्रेजी पूस्तक देखो, जिसके चारों कोनों पर चार वाक्य लिखे थे। एक कोने पर लिखा था
'ब्लड इज लाइफ' खून ही जीवन है क्योंकि जीवित रहने के लिये शरीर को खून की अत्यंत अावश्यकता है ।
दूसरे कोने पर लिखा था
'नॉलेज इज लाइफ' ज्ञान ही जीवन है। खून तो पशुओं के शरीर में भी बहुत होता है, किंतु पशु-जीवन भी कोई जीवन है ?
तीसरे कोने पर लिखा था'ट्र थ इज लाइफ' सत्य ही जीवन है ।
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