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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चारित्र योग योगशास्त्र के प्रणेता श्राचार्य हेमचन्द्रसूरि सम्यक् चारित्र का गुणगान करते हुए कहते हैं: 'सर्वं सावद्य योगानां त्यागश्चरित्रमिष्यते । कीर्तितं मदहिंसादित्रत भेदेन पचधा ॥' सभी पाप प्रवृत्तियों का त्याग ही चारित्र है । यह चारित्र, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप से पाँच भेदों वाला है । भगवान् महावीर के अनुसार चारित्र ही मोक्ष का राजमार्ग है। यदि कोई व्यक्ति मुख्य सड़क को छोड़कर काँटों भरी पगडंडी से अपने गांव पहुँच जाता है, तो वह अपवाद मार्ग कहा जाता है । सही मार्ग तो दीक्षा द्वारा चारित्र धारण करने का ही है । आज का मानव चारित्र से अधिक ज्ञानवादी बनता जा रहा है । किंतु ज्ञान तथा चारित्र का एकीकररण नहीं हो पा रहा है । इस विषय में शास्त्र कहता है : 'संसार सागराम्रो उच्छुढो मापुरणो निवुडेज्जा । चरण गुरण विप्पहरणो वुड्ढइ सुबहुपिजारणन्तो ।' हे ज्ञानी ! तू इस अहंकार का त्याग कर दे कि "मैं श्रुत ज्ञान से सम्पन्न हूँ और ज्ञान के बल पर संसार सागर से पार हो जाऊँगा ।" इस प्रकार ज्ञान का अहंकार करने वाले और चारित्र को स्वीकार नहीं करने वाले अनेक शास्त्रों के ज्ञाता भी संसार में डूब गये हैं । ज्ञान के द्वारा संसार और मोक्ष का कारण तथा उपाय जाना जा सकता है, परन्तु संसार सागर से पार तो चारित्र से ही हो सकता है । संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं, वे सभी सम्यक् चारित्र से ही वन्दनीय, पूजनीय और स्मरणीय बने हैं । सम्यग्दर्शन और सम्यक्ज्ञान प्रर्थात् जानना और मानना ठीक होने पर भी जब तक सम्यक् चारित्र का पालन न हो तब तक साधक प्रभिष्ट सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता | आध्यात्मिक विकास की १४ भूमिकाओं में प्रथम की चार ( प्रथम से चौथे गुणस्थान तक) भूमिकाएँ सम्यग्दर्शन पर For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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