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ज्ञान योग
योग शब्द की व्याख्या करते हुए हेमचन्द्र सूरि म.सा. कहते हैं कि ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही योग है। तत्त्वार्थ सूत्र में स्पष्ट कहा गया है कि
'सम्यग्दर्शनजानचारित्राणि मोक्षमार्गः ।' सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्र मिलकर मोक्ष मार्ग है । सर्व प्रथम यह समझना आवश्यक है कि ज्ञान क्या है ? योग शास्त्रकार ज्ञान की परिभाषा इस प्रकार करते है
'यथावस्थित तत्त्वानां संक्षेपाद् विस्तरेण वा। योऽवबोधस्तमत्राहुः सम्यक् ज्ञानं मनीषिणः ।।'
तत्त्व ज्ञान क्या है ? जो वस्तु जैसी है उसे वैसी ही जानना । चाहे संक्षेप में जाने या विस्तार में, किंतु जो जैसा है उसे वैसा ही जानने को सम्यक् ज्ञान कहते हैं । वर्तमान काल में व्यक्ति ज्ञान की परिभाषा तो कर लेता है, किंतु सम्यक् ज्ञान के द्वारा व्यक्ति को क्या प्राप्त होता है, यह समझने का प्रयत्न नहीं करता।
गीता के सार स्वरूप कृष्ण ने कहा कि सारे संसार में ज्ञान के समान पवित्र कोई नहीं है । सब से पवित्र सम्यक् ज्ञान है । कहा भो है -
'ज्ञानेनहीना: पशुभि: समानाः ।। ज्ञान रहित मनुष्य पशु के समान है । वाट इज नॉलेज (what is knowledge ?) ज्ञान क्या है ? नॉलेज इज लाइट (knowledge is light) ज्ञान एक प्रकाश है । वाट इज नॉलेज ? नॉलेज इज पावर = ज्ञान एक शक्ति है ।
वाट इज नॉलेज ? नॉलेज इज दा बेस्ट वरच्यु = ज्ञान सर्वोत्तम गुरण है । शास्त्रकार कहते हैं
'ज्ञानस्य परा संवित्ति चारित्रः ।' पहले ज्ञान, फिर चारित्र । अाप पूछेगे कि ज्ञान के पहले सम्यक शब्द क्यो लगाया गया है ? जिस प्रकार मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और
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