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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बचन योग [ ४५ - प्रयोग करना पड़ता है इसीलिये तो अाजकल अधिकांश पुरुष सफाचट मूछे वाले होते हैं।" वाणी की विशेषता बताते हुए पंडित वीर विजयजी म. ने जिनेश्वर परमात्मा की वाणी की कितनो सुन्दर महिमा व्यक्त को है पाठ महाप्रतिहार्यों में तीसरा अतिशय वाणी है 'जिन मुख दीठी, वाणी मीठी, सुरतरु बेलड़ी।' प्रभु की वाणी बेल के समान है। कल्पवृक्ष के समान है । वह बहुत मधुर है । कल्पवृक्ष से प्राप जिस किसी वस्तु को इच्छा करें, उससे आपको वह इच्छित वस्तु प्राप्त होती है, इसी प्रकार परमात्मा की वाणी आपके सभी संकल्पों को पूर्ण कर देती है । पाप पूछेगे कि यह कैसे हो सकता है ? जिन कारणों से आपके मन में संकल्प विकल्प उठते हैं, उन कारणों को ही प्रभु की वाणी समाप्त कर देती है । 'द्राक्षविहासे गइ वनवासे ।' द्राक्ष को लोग मीठी कहते थे, परन्तु प्रभु की वाणी की मधुरता के समक्ष बेचारी द्राक्ष फीकी पड़ गई और लज्जित होकर जंगल में चली गई। एक वृद्ध स्त्री दोपहर की गर्मी में जंगल में लकड़िये इकट्री करने गई । लकड़ियों का गट्ठर सिर पर रख कर चलने लगी तो अचानक एक लकड़ी नीचे गिर गई । गट्ठर को सिर पर रखे हुए ही अपने शरीर को झुका कर एक हाथ से लकड़ी उठाने लगी इतने में ही प्रभु की वाणी सुनाई दी । वह स्त्री उसी अवस्था में खड़ी हुई प्रभु की वाणी सुनती रही। प्रभु का उपदेश बंद होने पर ही उसने अपने शरीर को सीधा किया। यह है प्रभु की वाणी का प्रभाव ! ईख को घाणी में डाला तो उसमें से रस निकलने लगा, रस को देखकर ईख रो पड़ी, 'कहाँ प्रभु की वाणी और कहाँ में ? यह रस नहीं मेरी अश्रुधारा है ।' इसी पद में प्रभु की वाणी के विषय में प्रागे कहा गया है 'साकर सेती तारण लेती मुखे पशु चावती' शक्कर तो प्रभु की वाणी की मधुरता से घबरा कर पहले से ही For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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