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मन योग
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मन की दुष्ट भावना अन्यों को संताप देने वाली होती है । कृष्ण के पुत्र द्वारका के बाहर घूम रहे थे, वहां उन्होंने मदिरा पी और नशे में द्वैपायन ऋषि को बुरा भला कहा जिससे ऋषि ने क्रोधित होकर द्वारका को जला दिया ।
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'मन एवं मनुष्याणां कारणं बंध मोक्षयो ।'
मन ही मनुष्यों को बन्धन में बंधवाता है और वही उसे मुक्त भो करवाता है । अंतरंग दृष्टि वाली आत्मा के लिये मन मोक्ष का कारण बनता है तथा बाह्य दृष्टिवालों के लिए बंधन का कारण बनता है ।
मन को साधने के लिये पहले वाणी को साधा जाता है, फिर शरीर को साधा जाता है । जैन महर्षियों ने केवल मन निरोध का ही ध्यान नहीं बताया है, किंतु वचन और काया के निरोध के लिये भी ध्यान की प्रक्रिया बताई है ।
काया की स्थिरता के लिये ६ प्रकार के संलीनता तप नामक बाह्य तप को बताया गया है । शरीर तंत्र का मन पर प्रत्यधिक असर होता है । जिसके शरीर में वायु बढ़ गया हो, नाड़ियें कफ से भर गई हों, पित्त से मगज विक्षिप्त बन गया हो, वह व्यक्ति मन को वश में नहीं कर सकेगा ।
इंग्लैंड में चेतना शक्ति द्वारा उपचार करने वाली एक संस्था नेशनल फेडरेशन ग्राफ स्प्रीय्युअल हीलसी एसोशियेसन । उसमें लगभग पांच हजार सदस्य कार्य करते हैं । इस संस्था में रोगी की देखभाल शुभ भावना से की जाती है, रोगी को प्रसन्न रखकर श्रानन्दित करके की जाती है, जिससे शरीर में प्रोजस् स्फूर्ति और शक्ति प्राती है । श्रायुर्वेदिक, एलोपैथिक, होम्योपैथिक तथा बायोकेमिक सभी को यह बात मान्य है ।
'सुकरं मल धारित्वं सुकरं दुस्तपं तपः । सुकरोऽक्ष निरोधश्च दुष्करं चित्तरोधनम् ॥'
विभूषा का त्याग, अन्न जल का त्याग, इन्द्रियों का निग्रह करना सरल है किंतु मनोवृत्ति को वश में करना अत्यंत दुष्कर है । मन को वश में लाने के लिये शरीर को वात, पित्त, कफ से बचाना चाहिये ।
आपके रक्त में अशुद्धि हो तो उसे दूर करने के लिये प्राणवायु की
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