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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ ] अक्रिय रहता है तब तक उसकी शक्ति प्रगट नहीं होती, किंतु उसके सक्रिय बनते ही अनेक भवों के पापों को क्षय करने में समर्थ हो जाता हैं । नमस्कार योग 'नमो' शब्द संस्कृत के नमस् अव्यय से बनता है और नमस् नाम नम् धातु को प्रसुच् प्रत्यय लगाने से बनता है । नम् का अर्थ है नमस्कार करना | 'नमो' के द्वारा 'अहम्' शुद्धात्मा और उसके केवल ज्ञान आदि गुणों का ध्यान होता है । गंधक, मैनसिल और सुरेखार के मेल से मदिरा बनती हैं। हाईड्रोजन और प्रॉक्सीजन के मेल से पानी बनता है । पोटेशियम से भड़का प्रकाश सूर्य किरण जैसा दिखाई देता है । सूर्य के सामने बिलोरी काँच रख दो और उसके पास सूखे घास का एक तृरण रख दो तो अग्नि पैदा हो जायेगी। इसी प्रकार 'नमो' पद की श्राराधना से उसे जीवन में घटित करने से, प्रणिमा सिद्धि प्राप्त होती हैं जिससे व्यक्ति तृरण से भी हल्का बन सकता है । नमन करने का अर्थ ही अपने मान को दूर करना है। मान किस व्यक्ति को होता है । मान अपूर्ण व्यक्ति को होता हैं। पुराने जमाने में जब औरतें गेहूँ दलती थी तब उसे भिगो दिया जाता था जिससे दलने की आवाज नहीं होती थी, इसी प्रकार जिसके पास ज्ञान का तेज है वह आवाज नहीं करेगा । जिसके जीवन में गंभीरता है, विचारों में प्रौढ़ता है, वह प्रदर्शन कम करेगा । मार्क टवेइन अंग्रेज ने ठीक ही कहा था कि मात्र दो अंडे देने वाली मुर्गी कितनी फड़फड़ाहट करती है, मानो किसी नक्षत्र को जन्म दे रही हो । For Private And Personal Use Only बाजार में दो व्यक्ति लड़ने लगे। एक ने कहा 'तुम मुझे क्या समझते हो ?" दूसरे ने उत्तर दिया "मैं तुमको कुछ भी नहीं समझता ।' हमारे भीतर जब अहंकार का प्रवेश होता है, तब हम दो बड़ी भूलें करते है, एक तो हम अपने आप को श्रेष्ठ मानने लग जाते है और दूसरे लोगों को तुच्छ मान बैठते हैं। यदि आप दूसरों को तुच्छ समझोगे तो वे भी आपको तुच्छ समझेगें, इस प्रकार श्राप दूसरों की नजर से उतर जानोगे । आकाश में उड़ती पतंग सारी दुनिया को छोटी मानती है पर उसे यह पता नहीं है कि सारी दुनिया की दृष्टि में पतंग ही छोटी दिखाई देती है । सोडावाटर की बोतल में लगी गोली न तो बाहर की स्वच्छ हवा को बोतल में जाने देती हैं और न अंदर की गैस को बाहर आने देती है ठीक इसी प्रकार
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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