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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमस्कार योग 'नमो दुर्वार ....... ....... पंचसूत्र का प्रारम्भ णमो' पद से किया गया है। नमस्कार महामंत्र का प्रारम्भ भी 'रणमो' पद से हुआ है। धर्मरत्न प्रकारण का प्रारम्भ 'नमिउरण' पद से किया गया है। इसी प्रकार योगशास्त्र का प्रारम्भ भी 'नमो' पद से किया गया है । नमस्कार का भावार्थ आप जैसा समझते है बैसा सरल नहीं है, इसका गूढार्थ अत्यन्त कठिन है। यदि आप मुह से तो 'मो' बोलते हैं किन्तु झुकते नहीं तो समझिये अभी तक आप में अहंभाव है, विनय नहीं । - रामलीला का एक दृश्य था, जिसमें राम रावण का युद्ध हो रहा था। कुछ देर युद्ध के बाद राम के प्रहार से रावण का जमीन पर गिरना दिखाना था, पर रावण नहीं गिरता, निर्देशक के बार-बार इशारा करने पर भी नहीं गिरता । आखिर हार कर निर्देशक पर्दा गिरा देता है। फिर रावण का पार्ट करने वाले से नहीं गिरने का कारण पूछता है। रावण के अदाकार ने कहा "मेरे श्वसुर और मेरी सास रामलीला देखने आये हैं, उनके सामने मैं नीचे गिरू, यह कैसे हो सकता है ? व्यवहार में नम्रता या नीचे झुकने को कायरता समझी जाती है, किंतु आध्यात्मिक क्षेत्र में नम्रता को वीरता की गिनती में गिना जाता है । सम्पूर्ण योगशास्त्र का रहस्य उसके प्रथम श्लोक के प्रथम पद 'नमो' में समाया हुआ है। 'नमो' पद के द्वारा अहं भाव की समाप्ति होती है और समभाव की प्राप्ति होती है । अहं भाव स्वार्थ का भाव है, जबकि समभाव स्वार्थ भाव है । स्वार्थ भाव की वृद्धि के साथ ही स्वार्थ भाव की कमी होती है । तुबा भले ही छोटा हो किंतु साढ़े तीन मरण की काया वाले को भी तार देता है। इसी प्रकार 'नमो' शब्द भले ही छोटा हो परन्तु उसमें अनेक भवों के पापों से बचाने की शक्ति है। जैसे लाखों मरण रूई को जलाने के लिये एक चिंगारी काफी है, वैसे ही अनेक जन्मों के पापों को जलाने के लिये 'नमो' शब्द की आराधना काफी है । जब तक 'नमो' शब्द For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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