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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra योगशास्त्र ....? www.kobatirth.org 'मनस्यन्यद' प्रकाश २ श्लोक पृष्ठ ८६ योगशास्त्र ज्ञानार्णव पृष्ठ १४५ श्लोक ८० 'मनस्यन्यद्वचस्येन्यद् 'समीरइव निसङ्गाः- योगशास्त्र 'समीरइव निसङ्गः- ज्ञानार्णव Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कितने ही श्लोकों में शब्दांतर मात्र हैं, जैसे 'सुमेरुइव निष्कम्पः यासां साधारण स्त्रीणां ' - योगशास्त्र 'स्वरर्णाचलइवा कम्पः यासां प्रकृति दोषेरण' -- ज्ञानार्णव 'विरतः कामभोगेभ्यः ' - - योगशास्त्र 'वरिज्य कामभोगेभ्यः - ज्ञानारणव । [ ३ ध्यान और योग के पारिभाषिक शब्द भी ज्ञानार्णव के शब्दों के साथ साम्यता रखते हैं। ज्ञानार्णव एक विस्तीर्ण ग्रंथ है जबकि योगशास्त्र इसके समक्ष एक लघु ग्रन्थ है । ज्ञानार्णव के कर्ता शुभचन्द्रजी का समय विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी का है, जबकि हेमचन्द्रसूरि का शुभचन्द्रजी के ७०-८० वर्ष बाद हुए हैं । योगशास्त्र के कुल बारह प्रकाश में १०१३ श्लोक हैं । इनको दो विभागों में विभक्त किया गया है | इस्लाम का विश्वास है कि मोहम्मद साहब को दो प्रकार से ज्ञान मिला था - १. इल्मेसफीना और २. इल्मेसीना । पहला ज्ञान पुस्तकीय ज्ञान था जिसे कुरानशरीफ के नाम से प्रकट किया गया है । दूसरा ज्ञान हार्दिकज्ञान था जो योग्य अधिकारियों को दिया गया । हमारे योगशास्त्र में भी दो विभाग हैं । प्रारम्भ में १ से ४ प्रकाश तक प्राथमिक ज्ञान दिया गया है, तथा ५ से १२वें प्रकाश तक हार्दिक ज्ञान प्रकट किया गया है । प्रथम प्रकाश में ५६ श्लोक हैं । इसमें योग के स्वरूप की चर्चा, ५ महाव्रतों की भावना, समिति, गुप्ति तथा मार्गानुसारिता के ३५ गुणों का वर्णन है । For Private And Personal Use Only दूसरें प्रकाश में ११५ श्लोक हैं । इसमें १२ व्रतों की चर्चा, सम्यक्त्व, मिथ्यात्व, कुदेव, कुगुरु और कुधर्म की पहिचान तथा सुदेव, सुगुरु और सुधर्म के स्वरूप का वर्णन है, साथ ही साथ ५ अणुव्रतों का भी वर्णन है । तीसरे प्रकाश में १५६ श्लोक हैं । इसमें ३ गुरणव्रतों और ४
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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