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ब्रह्मचर्य
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चर्य प्रर्थात् रक्षण, अध्ययन, चिंतन । जिस दीपक का तला टूटा होगा उसका तेल उर्ध्वगमन नहीं करेगा। उर्ध्वगमन के बिना दीपक प्रकाशित नहीं होगा. इस प्रकार वीर्य के उर्ध्वगमन के बिना श्रात्मा प्रकाशित नहीं होगी । ब्रह्म + वयं = अर्थात् वीर्य रक्षरण, विद्या प्रध्ययन एवं प्रात्मचिंतन | 'मन्त्र फले जग जस वधे, देव करे रे सानिध्य । ब्रह्मचर्य धरे जे नरा, ते पामे नव निध ।।'
ब्रह्मचर्य से मन्त्र फलता है, संसार में कीर्ति बढती है, देवता सिद्ध होते हैं, जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य को धारण करते हैं, उन्हें सभी प्रकार की निधियाँ प्राप्त होती है ।
संयोग से द्रोपदी ने नवकार के स्मरणपूर्वक कायोत्सग किया जिससे सौधर्म विमान स्थिर हो गया । यह सतीत्व का प्रभाव है, शील का प्रभाव है । सेनापति नीचे आया, सती की प्राज्ञा का पालन किया, फिर विमान चला यह है मन्त्रफल ! !
साधक यश कामना से शील का पालन नहीं करता, परन्तु शील धर्म की प्रारावना उसके यश को विश्वव्यापी बनाती है । भिखारी भीख माँगता है । पतिव्रता के गोद में पति है और बालक अग्नि से खेल रहा है । भखारी कहता है कि भिक्षा न देगी तो जला दूँगा । फिर भी सती अपने पति का त्याग नहीं करती। इसी से सती की कीर्ति बढ़ती है ।
सती कहती है काजल रहित, बत्ती रहित, तेल रहित, चंचलता रहित दीपक को जो धारण करेगा. वह मेरा पति है । अन्तःकरण में माया जाल न हो। नवतत्त्व के विषय में अस्थिरता को बत्ती न हो । स्नेहभंग रूपी तेल न हो, सम्यक्त्व भंग रूपी चंचलता न हो विवेकरूपी दीपक धारण करने वाला हो, वह मेरा पति है ।
भरत चक्रवती रूप एवं शील सहित होते हैं । ब्रह्मचक्रवर्ती के रूप तो होता है पर शील नहीं होता । हरिकेशी अणगार के शील तो है पर रूप नहीं है । काल सौरिक कसाई के रूप तो है पर शील नहीं है | आपके पास क्या है ? इसका निर्णय आप ही करें ।
ए व्रत जगमां दीवो मेरे प्यारे ।'
शरीर और मन की विचित्रता को समझें । भूख लगने पर भोजन
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