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पांच महाव्रत की पांच भावना
खून से सनी तलवार लिये है, फिर भी मुनि को पूछता है कि धर्म क्या है ? मुनि कहते हैं उपशम सवर और विवेक में ही धर्म है ।
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दृढ़ प्रहारो नगर के ४-४ दरवाजों पर मौनपूर्वक ताड़ना तर्जना सहन करता है । सोचता है ये नगर निवासी तो मुझ अकेले को ही मारते हैं, मैंने तो गाय, भ्रूण, स्त्री, ब्राह्मण की कई हत्यायें की है ।
भावना की वृद्धि और एकाग्रता की वृद्धि के लिये काउस्सग्ग ( कायोत्सर्ग) आवश्यक है । शरीर रूपी पृथ्वी पर शुभकर्म रूपी दिन और अशुभ कर्म रूपी रात दिखाई देती है । पर शरीर से भिन्न आत्मसूर्य के प्रकाश में आने पर रात्रि दिन से परे केवलज्ञान प्रकाशित होता है । केवलज्ञान की प्राप्ति में कायोत्सर्ग का फल है ।
हम मनुष्य हैं, हमारे पास चार गतिशील तत्त्व हैं: शरीर, श्वासोश्वास, वाणी और मन । ये राग द्वेष से प्रतिक्षण प्रकंपित होते रहते हैं । श्रावश्यकसूत्र में हरिभद्रसूरिजी म. सा. ने कायोत्सर्ग का वर्णन किया है । तत्त्वार्थसूत्र टीका में इसका वर्णन है । योगशास्त्र के चौथे प्रकाश में भी इसका वर्णन है ।
डाक्टरों का कहना है कि ५० प्रतिशत रोग तनाव के कारण होते हैं । तनाव दूर करने का उपाय शवासन है । कायोत्सर्ग से शरीर तथा बुद्धि की जड़ता दूर होती है । मेघविजयजी म. सा. ने ग्रहंद गोता में कहा है कि वायु के उदय से चित्त में जड़ता अस्थिरता तथा भय पैदा होता है । ज्ञानाराधन से वायु की शुद्धि होती है । चारित्राराधन से कफ का नाश होता है । काउस्सग्ग निर्जरा का प्रसारण हेतु है । काउस्सग्ग तीन प्रकार से किया जाता है: सोते-सोते, बैठे-बैठे, खड़े-खड़े । इसके करने से सहनशीलता, एकनिष्ठा और मन, वचन, काया की एकाग्रता प्राप्त होती है । शरीर की जड़ता और मन की मंदता दूर होती है । धातु एवं वायु का वैषम्य दूर होकर बुद्धि एवं विचार-शक्ति की वृद्धि होती है ।
मैं तप से दुर्बल होकर, भय अथवा उपसर्गों से निर्भीक बनकर श्मशान में रह कर उत्तम पुरुषों की करणी कब करूगा ? वन में पद्मासन से काउस्सग्ग में बैठा हूँगा और हरिण के बच्चे मेरी गोद में आकर खेलेंगे । वृद्ध हरिण मेरे मुँह को प्रचेतन समझ कर कब सूघेंगे ? उन्नीस
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