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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नियतिवाद पुरुषार्थ [ बिठाया, स्वयं घोड़ों के स्थान पर रथ में जुड़े और रथ को खींचने लगे। रथ जब महल के द्वार से निकल रहा था तब धड़ाम से रथ द्वार पर गिरा जिससे माता-पिता वहीं जलकर मर गये । हाथी, घोड़ा, रथ, सेना, धन, संपत्ति, महल प्रालिकाएं आदि से स्वर्ग के समान सुसज्जित द्वारका नष्ट हो गई । आप सोचते होंगे कि यदि द्वारका में एक व्यक्ति भो प्रायविल तप चालू रखता, तो शायद द्वारका जलकर नष्ट न होती । किंतु जो होना होता है, वह तो होकर ही रहता है, द्विपायन तो निमित्त मात्र हैं। ज्ञानी के ज्ञान में तो उसी क्षण, उसी पल द्वारका का नाश स्पष्ट दिखाई दे रहा था । हमारी स्थूल आँखें तो बाहर के निमित्त को ही देखती हैं और निमित्त पर प्रसन्न या क्रोधित होती हैं । सर्वज्ञ के ज्ञान में तो यह स्पष्ट दिखाई देता है कि यह कार्य इस क्षरण, इस प्रकार होने वाला है। पांच पांडव जैसे शक्तिशाली व्यक्तियों के होते हुए भरी सभा में द्रोपदी का चीर खींचा गया, हमें यह घटना प्रतहोनी भले ही लगे, पर ज्ञानियों के ज्ञान में तो यह घटना इसी प्रकार घटित होना पहले से ही निश्चित थी । १०७ एक व्यक्ति प्राज दीक्षा लेता है और कल छोड़ भी देता है । सर्वज्ञ अपने ज्ञान चक्षु से देखते हैं कि यह कल दीक्षा पालने वाला नहीं है, यह तो शासन का महान् शत्रु बनेगा, फिर भी दीक्षा देते हैं या नहीं देते ? अवश्य दीक्षा देते हैं आगम का पाठ भी है कि 'ऊपर से गुरु उतर रहे थे तब शिष्य ने एक बड़ी शिला उठाई और गुरु के ऊपर फेंक दी । यह तो संयोग की बात ही थी कि गुरु ने दोनों टांगें चौड़ी कर दो और शिला उन दोनों टांगों के बीच आकर गिरी जिससे गुरु की कोई चोट नहीं आई। भगवान् महावीर ने जमालि को दीक्षा दी, स्वयं का शिष्य बनाया । जानते थे कि यह दीक्षा लेकर छोड़ने वाला है, आगे चलकर यह निह्नत्र बनेगा, फिर भी उसे दीक्षा दी क्योंकि यह घटना ऐसे ही घटित होने वाली थी, उसे रोकने की शक्ति स्वयं भगवान् में भी नहीं थी । For Private And Personal Use Only अन्तर है ? यदि और यदि प्रशुभ प्रश्न उठता है कि भाविभाव और कर्म में क्या किसी के शुभभाव का उदय है तो शुभ होने वाला ही है का उदय है तो अशुभ होने वाला ही है, तब फिर भाविभाव ( ( होनी) को कर्म से अलग क्यों माना गया ? बात यह है कि कर्म सिर्फ आत्मा (चेतन्य ) को लगता है । परन्तु पत्थर, लकड़ी, कपड़े आदि जड़ वस्तुनों से कर्म नहीं चिपकला | सूर्य के बाद चन्द्र और रात के बाद दिन आता है तो इसके
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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