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(२०) (राग : सनर भेदी जिनपूजा रचीने) 'पूर्वदिशि उत्तरदिशि वचमां, ईशान खूणो अभिरामजी, तिहां पुक्खलवई विजया पुंडरीगिणी, नयरी उत्तम ठाणजी; श्री सीमंधरजिन संप्रति केवली, विचरे जयकारीजी, बीजतणे दिन चंद्रने विनवु, वंदना कहेजो अमारीजी. १ जंबूद्वीपमां चार जिनेश्वर, धातकीखंडे आठ जी, पुष्कर अरधे आठ मनोहर, एवो सिद्धांते पाठजी, पंच महाविदेह थईने, विहरमान जिन वीशजी, जे आराधे बीज तप साधे, तस मन हुई जगीशजी. २ समवसरणमां बेसी वखाणी, सुणे इन्द्र इन्द्राणीजी, सीमंधरजिन प्रमुखनी वाणी, मुज मन श्रवणे सुहाणीजी, जे नर नारी समकितधारी, ओ वाणों चित्त धरशे जी, बीजतणो महिमा सांभळतां, केवल कमला वरशेजी. ३ विहरमानजिन सेवाकारी, शासनदेवी सारीजी, सकलसंघने आनंदकारी, वांछित फल दातारीजी; बीजतणो तप जे नर करशे, तेनी तु रक्षाकारीजी, वीरसागर कहे सरस्वतीमाता, दीओ मुज वाणी रसालीजी. ४
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