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जिन त्रिगडे सोहे मोहे परषा बार, जिनवाणी सुणतां केई पामे भवपार: नव वत्त्व विचारी सारी सोमन्धरवाण, समजे सवि प्राणी बूझे जाण अजाण. ३ जिन शासननायक दायक समक्ति सार, रास आणाकारो सुविचारी नर नारः तस सोनिध्य करजो हरजो विघन अनेक, देव देवीनी शक्ति कान्ति सेवक सुविवेक. ४
(१०)
(राग : शचुंजय मंडन .... ) श्री सीमन्धर जिनवर राय नमुनित पाय; चोराशी पूरव लाख तणुं जस आय; सोवनषन साहे जग मोहे जगदीश, संप्रति जगमांहे सवली जास जगीश. १ अतीत अनागत वर्तमान भगवंत, पन्नरे क्षेत्रे जे राखे जग जंत; वली धंदु भगहि विहरमान जिन वीश, सुखदुख सवि जगमा जे जाणे निशदिश. २ आगमने अंगी करी तुज परतिकख एह, विष विषयने टाळे निःसंहः पंगु पय पामी जिनवाणो अभ्यास, कीजे सुणो भवियण जिम पहुंचे सत्रि ओम.३
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