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आत्माने उपयोगी तत्त्वोमां परमात्मतत्त्वनी जे प्रधानता छे, ते बीजा कोईनी होई शके नहीं. शुं कहो छो ? हां... हां... आ एक नक्कर सत्य हकीकत छे. जुओने परम + आत्मा = परमात्मा. आम परमात्मा शब्द आवात सूचित थई जाय छे, केम के आत्मा उपरथी ज ए शब्द बनाववामां आव्यो छे. वास्तवमां तो परमात्म दशावाळो आत्मा ज 'आत्मा' शब्दने लायक छे ते विमानो आत्मा ए 'आत्मा' शब्दने लायक गणी शकाय नहीं, तेम छतां मेघमाळाथी आच्छादित ( ढंकायेलो) एवो सूर्य, मेघमाळाना रसाळानी विदाय पछीना समयनी अपेक्षाओ जेम सूर्य कद्देवाय छे अथवा तो माटीमा मळेलं पण सुवर्ण शुद्ध सुवर्ण थवानी अपेक्षाओ जेम सुवर्ण कद्देवाय छे. तेवी ज रीते आत्मा पण भविष्यमा प्राप्त थनारी (परोक्ष मटो प्रत्यक्ष थनारी) परमात्म दशानी अपेक्षाने लक्ष्यमां राखीने आत्मा कहेवाय छे– 'आत्मा' शब्दने लायक गणाय छे.
आत्मा से प्रकाशना एक नानकडा किरण बराबर हो, परमात्मदशा ए अफाट प्रकाशनों पुंज छे. परमात्म दशा अज आत्मानुं रहस्य छेतत्त्व छे- अनुं सर्वस्व छे, चंद्रने जोतां ज जेम सागरनां नीर उछाळा मारे छे ते ज रीते परमात्मानां (बिंबनां ) दर्शन थतां ज आत्मा पागल बनीने नाची ऊठवो जोईए, केम के जेस चंद्रनी उत्पत्तिनो सागर साथै संबंध मनाय छे, तेम परमात्मदशाने । पण आत्मानी जोडे संबंध छे ते संबंध अवो तो गाढ छे, के जाणे क्षीर-नीर अने दूध-साकर के पछी
तेथीय वधारे.
महाराजना
"आतम परमातम पद पावे, जो परमातम शुं लय लावे" चिदानंदजी आ शब्दो ले, पण अ परमात्मा वसे छे क्यां नामस्थापना द्रव्यनिक्षेपाओथी तो ए परमात्मा अहीं आपणा भरत क्षेत्रमां मळे पण भावनिक्षेपोवाळा अरिहंत परमात्मानो साक्षात्कार तो 'महाविदेहनी' मुसाफरी विना हालमां कयांय शक्य ज नथी.
त्रण निक्षेपा ( भेदो) तो भावनिक्षेपो तो अहीं सर्वथा
भरतनी भूमि पर प्राप्त थाय पण चतुर्थ अत्राप्त छे अने एनी जे उपकारकता छे
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