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अप्राप्तनी प्राप्ति काजे
मोर मेह रवि कमळ जिम,
चंद्र चकोर हसंत; तिम दूरेथी अम मनह,
तुम समरण विकसंत' मनमंदिर मोरे आवीए.......
ओ माग हैयान। हार । प्राणाधार ! त्रिभुवनबंधु ! करुणासिन्धु ! पनोता परमेश्वर ! पधारो पधारो, आप आ दासना मनमंदिरमां पधारो. आप सत्वरे पधारो. ओ परमकृपाळु : अमारी आ एक अरज अवधारो, आप अमारा मनमंदिरमा पधारो.
ओ अतिशयता अरिहत ! आप सत्वरे अमारा मनमंदिरमां पगलीयां करी एने पावन करवा कृपा करो.
ओ भुवनगुरु भगवंत ! शुं आ दासनी आटली पण अरज उर नहि धराय ? मान्य नहि थाय !
अमाप्तनी प्राप्ति काजे मनुष्य युगना उगम काळ थी प्रयत्नशील रह्यो छे, अने रहेवानो छे. ए दुर्लभने सुलभ करवा मागे छे अने अलभ्यने लभ्य करवा मांगे छे.
____ अप्राप्त पदार्थ बे प्रकारमा होई शके : एक तो आत्माने उपयोगी उपकारक अने बीजा आत्माने अनुपयोगी (संसारने उपयोगी) आत्माने उपयोगी तत्त्वो आम तो एक नहीं अनेक छे, पण सर्वमां शिरोमणि छे 'परमात्मा'.
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