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॥ श्री सीमन्धरस्वामिजिन चैत्यवंदन ॥
(वातोर्मो)
(१) पञ्चत्रिंशद्गुणपूर्णा गिरन्ते मृद्वी मृद्रों सुरगेयां मनोज्ञाम् । शृण्वन् शृण्वन् सुखपाथोधिमग्नो भकत्याऽह स्यां प्रभु सीमन्घर !
द्राक् ।। १ युष्मद्धयान मम पापं प्रहत प्राकटय ते गुणपुलो बिभर्ति । नाम्नाऽह्मादोऽमर सौख्याद्विशेषो नित्य सेवे चरणाम्भोजयुग्मम् ॥२ चारित्रं ते सावधेऽहं कदैत्य लप्स्ये स्ममिन्निति वाञ्छा सदा मे । पूर्ति यायात् कृपया स्वच्छचेतः सैर कुर्यात्सुरनाथाधिनाथ ।। ३
जय जय त्रिभुवन आदिनाथ, पंचम गति गामीः जय जय करुणावंत प्रभु, भविजन हित कामोः १ जय जय इन्द्र नरेन्द्र, वंद, सेवित शिर नामी; जय जय अतिशय अनंत वंत, अंतर गति यामी; २ पूर्वविदेहे विराजता, श्री सीमन्धर स्वाम; त्रिकरण शुद्धे त्रिकाल मैं, नित प्रति कर प्रणाम; ३
चउ जिन जम्बूद्वीपमा अड घातकीखण्डे; पुष्करार्धे आठ जाणीए, एम विश अखण्डे. १ अड पणवीश चोवीशमी, नवमी विजये विचरता; बाळ तरुण नृपपदणे, वळी अपर अरिहंताः २ सित्तेर सो उत्कृष्टथी ए, भरहेरवय प्रमाणः झाविमळ ।जनराजनी, शिर धराए शुभ आग. ३
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